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अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक
में अपने-आपको यथार्थ रूप में प्रस्तुत करता है । वह मानसिक दृष्टि से बहुत स्वस्थ और शक्तिशाली होता है | अयथार्थ रूप में वही व्यक्ति अपने को प्रस्तुत करता है, जो मन से दुर्बल होता है । ऐसा व्यक्ति अपनी कमजोरी का लाभ उठाना चाहता है । सहिष्णुता और समता ___ मानसिक स्वास्थ्य के ये कुछेक सूत्र हैं । ये ही समता के सूत्र हैं । जिस व्यक्ति के मन में समता प्रतिष्ठित है, वह कभी अपने को अयथार्थ रूप में प्रस्तुत नहीं करेगा । जिस व्यक्ति के मन में सहिष्णुता का विकास है, वह समता को साध सकेगा । जिसके मन में सहिष्णुता नहीं है, वह समता नहीं साध सकता । वह बालू क्या समता साध पाएगी जो थोड़ी-सी गर्मी में गर्म हो जाती है और ठंड में ठंडी हो जाती है ? प्रश्न है कि क्या बालू गर्म है ? क्या बालू ठंडी है ? उत्तर कुछ भी नहीं दिया जा सकेगा । वह सर्दी के दिनों में ठंडी और गर्मी के दिनों में गर्म होती है । दिन में बालू गर्म होती है और रात में ठंडी । इसका अपना कुछ नहीं है । वैसे ही हवा भी न ठंडी होती है
और न गर्म । सर्दी के दिनों में वह ठंडी और गर्मी के दिनों में गर्म हो जाती है । हवा अपने-आपमें ठंडी भी नहीं है और अपने-आपमें गर्म भी नहीं है ।
जिस व्यक्ति का मन मूढ़ता से आप्लावित नहीं है, जिस व्यक्ति का मन समता में प्रतिष्ठित है, वह न ठंडा है और न गर्म, वह न राजी है और न नाराज । जिसका मन मूढ़ होता है, वह पहले क्षण में राजी होता है और दूसरे ही क्षण में नाराज हो जाता है | मन के अनुकूल होता है तो वह राजी होता है और प्रतिकूल होने पर तत्काल नाराज हो जाता है । वह मदारी के हाथ का बंदर बन जाता है । जब चाहो तब नचा लो, जैसा चाहो वैसा नचा लो । समता के आने पर यह सब छूट जाता है । नाराजगी और राजीपन का चक्र टूट जाता है।
मन की अनन्त पर्यायें हैं । वह प्रतिपल बदला रहता है | मन के आधार पर किसी एक निश्चित सिद्धांत की स्थापना नहीं की जा सकती । किसी भी एक निश्चय की अनुभूति नहीं की जा सकती । मन अनेक रूप बदलता है ।
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