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मानसिक स्वास्थ्य और सामायिक
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यथार्थरूप में प्रस्तुत करना । समाज के सन्दर्भ में व्यक्ति अपने-आपको यथार्थरूप में प्रस्तुत करना नहीं चाहता । वह अपने-आपको बड़े के रूप में प्रस्तुत करता है, जिससे कि उसकी प्रतिष्ठा बढ़े और वैवाहिक संबंध सुविधापूर्वक हो सकें। किन्तु जब यथार्थ सामने आता है तब बहुत कठिनाइयां पैदा हो जाती हैं । तब मनमुटाव होता है लड़ाइयां होती हैं, मानसिक अशांति होती है और वह वर्षों तक बनी रहती है । सुना है, एक व्यक्ति अपनी लड़की के लिए दूसरे गांव में लड़का देखने गया । वहां पहले से ही षड्यंत्र रचा रखा था । एक कमरे से रुपयों के टनकार की आवाज आ रही थी । वह टनकार क्षण भर के लिए भी बन्द नहीं हो रही थी। लड़की वालों ने सोचा, कितना धन है इनके पास ? कितने समय से ये रुपये गिन रहे हैं । विवाह की बात तय हो गयी । ठीक समय पर विवाह हो गया । फिर वास्तविकता का पता चला | दोनों परिवार वाले एक-दूसरे से कट गए । संबंधों में दरारें पड़ गयीं।
सामाजिक संदर्भ में अपने-आपको अथार्थ रूप में प्रस्तुत करना अपनेआपको धोखा देना है, दूसरे को धोखा देना है । इससे न जाने कितनी कठिनाइयां और समस्याएं पैदा हो जाती हैं। द्वैध न रहे
प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन के हर क्षेत्र में यथार्थ को छिपाता है और अयथार्थ को प्रस्तुत करता है । यह द्वैध है | जो सुन्दर नहीं है, वह अपनेआपको सुन्दर दिखाने का भरपूर प्रयत्न करता है । वह सभी उपाय काम में लाता है । जितनी भी प्रसाधन की सामग्री है, वह उपयोग करता है । पर वास्तविकता जब खुलती है तब नग्न सत्य सामने आता है । सामने वाला व्यक्ति भी असंतुष्ट होता है और स्वयं भी असंतुष्ट होता है ।
- एक व्यक्ति था । वह अनेक बार संपर्क में आता । वह सदा यही कहता- 'मैंने जीवन में एक व्रत ले रखा है कि मैं जैसा हूं वैसा ही दीखू, वैसा ही अपने आपको प्रस्तुत करूं । ऐसा न हो कि मैं हूं तो और कुछ और प्रस्तुत कुछ और ही करूं । अपने व्यक्तित्व पर ऐसा परदा डाल दूं कि देखने वाले को वह और किसी रूप में दीखे । यह धोखा है।' जो व्यक्ति सामाजिक संदर्भो
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