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अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक
हर आंच में से गुजरने में सफल हो जाता है । किन्तु जो व्यक्ति आराम में रहा है, जिसने कभी दुःख-दुविधाओं को नहीं देखा, वह व्यक्ति आकस्मिक कठिनाइयों में टूट जाता है | वह उनको सहन नहीं कर सकता । इसलिए विपदाओं को झेलने का अभ्यास करना चाहिए । संकल्प की बाधाएं
लोग संकल्प करते हैं, पर अपने संकल्प पर टिक नहीं पाते । इसके तीन कारण हैं
१. चित्त की चपलता। २. असहिष्णुता । ३. इन्द्रियों की उच्छंखलता।।
अत्यक्तचित्तचापल्याः, अजितोग्रपरीषहाः।
अनिरुद्धाक्षसन्तानाः, प्रस्खलन्त्यात्मनिश्चये ॥ -संकल्प करते समय कष्टों की धारणा नहीं होती, किन्तु वे आते हैं तब जिनमें तितिक्षा का अभ्यास नहीं होता, उनका जीवन ही नष्ट हो जाता
है।
जीवन में सहिष्णुता का विकास अत्यन्त आवश्यक है । तितिक्षा का इतना विकास होना चाहिए कि व्यक्ति आने वाली प्रत्येक परिस्थिति को झेल सके और उसके साथ सामंजस्य स्थापित कर सके । ऐसी स्थिति में विश्व की कोई शक्ति मन को विचलित नहीं कर सकती । जिस व्यक्ति ने सहिष्णुता का अभ्यास कर लिया, सहिष्णुता साध ली, उस व्यक्ति के मन को भगवान् भी असंतुष्ट नहीं कर सकता । जिसने सहिष्णुता का अभ्यास नहीं किया, उस व्यक्ति के मन को भगवान् भी स्वस्थ नहीं बना सकता । सब कुछ मिल जाने पर भी वह यही कहेगा-अमुक वस्तु नहीं मिली । उसका असंतोष उभरउभरकर बाहर आता रहेगा। सहिष्णुता का विकास होने पर असंतोष मिट जाता है। यथार्थ प्रस्तुति
मानसिक स्वास्थ्य की साधना का पांचवां सूत्र हैं-अपने आपको
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