________________
मानसिक स्वास्थ्य और सामायिक सत्य के प्रति समर्पण नहीं किया, वे मत्यु की घटना से विचलित हो जाते हैं और अपने मन को रोगी बना देते हैं । सहिष्णुता का विकास ___मानसिक स्वास्थ्य की साधना का चौथा सूत्र है- सहिष्णुता का विकास | सहिष्णुता को विकसित किए बिना कोई व्यक्ति संतुलित जीवन नहीं जी सकता । जो व्यक्ति सहिष्णु नहीं होता, वह अपने मन को सदा दुःख में डाले रहता है । कांच का बर्तन कब फूट जाए, कहा नहीं जा सकता । असहिष्णु व्यक्ति का मन कब टूट जाए, कहा नहीं जा सकता । सदा आशंका बनी रहती है । थोड़ी-सी कोई स्थिति आती है और तत्काल मन बेचैन हो उठता है । व्यक्ति ध्यान करने बैठता है । गर्मी के दिन हैं । पंखा अचानक बंद हो जाता है | अब मन ध्यान से हटकर पंखे में उलझ जाता है । मन तड़पने लगता है । मन इतना आकुल-व्याकुल हो जाता है कि बेचारा ध्यान कहीं' अटक जाता है। ____ यह क्यों होता है ? यह इसलिए होता है कि व्यक्ति ने सहिष्णुता का मूल्यांकन नहीं किया । हजारों पदार्थों के उपलब्ध होने या न होने पर भी सहिष्णुता अपना मूल्य नहीं खोती । जीवन की सारी सुख-सुविधाएं उपलब्ध हों, किन्तु वे शाश्वत नहीं हैं । यह सार्वभौम नियम है कि वे प्राप्त होती हैं
और दूर हो जाती हैं । जिस क्षण में वे छूटती हैं उस क्षण में क्या बीतती है, यह वही व्यक्ति जान सकता है, जिसने सहिष्णुता को नहीं समझा है | जिसने सहिष्णुता को साध लिया है, उसके लिए सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास, सुविधा-असुविधा कोई अर्थवान् नहीं होती । क्योंकि ऐसे व्यक्तियों ने अपने मन और अपने शरीर का ऐसा निर्माण कर डाला है कि वह हर स्थिति को झेलने में समर्थ और सक्षम होता है | जब हर स्थिति को झेलने का सामर्थ्य नहीं होता है तब अनेक समस्याएं उठती हैं, व्यक्ति घबरा जाता है । जो व्यक्ति कठिनाइयों में पला-पुसा, फिर कुछ सुविधाएं उपलब्ध हुईं । आराम में जीने लगा, फिर कठिनाइयां आ गयीं तो ऐसा व्यक्ति उन कठिनाइयों को झेल सकता है । वह विचलित नहीं होता | जिस व्यक्ति ने आग को झेला है, वह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org