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समभाव है चेतना का तीसरा आयाम
अर्थात् मानसिक चेतना के परे भी कोई संसार है-यह हमें ज्ञात ही नहीं है। हमारे जीवन का पूरा क्रम इन दो आयामों-इन्द्रिय चेतना और मनःचेतना की परिधि में चलता है । अध्यात्म का विकास वहां से शुरू होता है जहां ये आयाम टूट जाते हैं । वहां तीसरा नया आयाम खुलता है । वह है समभाव । वहां सारे द्वन्द्व समाप्त हो जाते हैं । न शोक, न हर्ष । न सुख, न दुःख | न जीने का हर्ष और न मरने का शोक ! न मान के प्रति आकर्षण और न निन्दा के प्रति प्रकंपन-इन दोनों से हटकर एक ऐसी स्थिति बन जाती है, जो संतुलित होती है । यह है चेतना का तीसरा आयाम | इस नये आयाम की उपलब्धि में ही जीवन की सफलता का सूत्र छिपा ।
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