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अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक
को पकड़ने के लिए प्राण को पकड़ें और प्राण को पकड़ने के लिए श्वास को पकड़ें । जब श्वास की पकड़ आती है तब सारा व्यक्तित्व ही बदल जाता है । श्वास-परिवर्तन के द्वारा हम मानसिक विकास कर सकते हैं | जरूरी है सामायिक
___ मानसिक विकास को बढ़ाने के लिए 'सामायिक' जरूरी होती है | जब तक सामायिक नहीं होती, मानसिक विकास भी पर्याप्त नहीं होता । सामायिक के बिना समता का विकास नहीं होता और जो विकास है, वह भी खंडित होने लगता है । जो निर्मित होता है वह टूटने लग जाता है । दोनों का योग है । मानसिक शक्ति का विकास हुए बिना सामायिक का विकास नहीं हो सकता और सामायिक का विकास हुए बिना मानसिक शक्ति का विकास नहीं हो सकता। ___ - सामायिक हमारी चेतना का तीसरा आयाम है । हम चेतना के दो आयामों में जीते हैं, जिनका सम्बन्ध द्वन्द्व की आपूर्ति से है । हमारे जीवन में बहुत सारे द्वन्द्व हैं लाभ और अलाभ का एक द्वन्द्व है, सुख और दुःख का एक.द्वन्द्व है, जीवन और मरण का एक द्वन्द्व है, निन्दा और प्रशंसा का एक द्वन्द्व है, मान और अपमान का एक द्वन्द्व है-ये पांच प्रकार के द्वन्द्व हैं । अध्यात्म शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र इन पांचों द्वन्द्वों के आधार पर चलते हैं । शकुन का शास्त्र भी इन्हीं द्वन्द्वों के आधार पर चलता है ।
समभाव का आयाम
ज्योतिषि ग्रहों की गति के आधार पर लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवनमरण का निर्णय करता है । मनुष्य के भाग्य का निपटारा इन द्वन्द्वों के आधार पर होता है । जब इन द्वन्द्वों के विषय की जिज्ञासा समाप्त हो जाती है तब द्वन्द्व समाप्त हो जाते हैं । अध्यात्मशास्त्र इनसे प्रारंभ होता है किन्तु द्वन्द्वातीत चेतना के आधार पर चलता है। सामान्य जीवन में हम द्वन्द्वों से ही परिचित होते हैं । प्रतिकूल स्थिति में मन में शोक और अनुकूल स्थिति में मन में हर्ष आना स्वाभाविक है । हमने हर्ष और शोक-दोनों को स्वाभाविक मान लिया ।
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