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नारी का बन्ध- विमोचन / ७९
चंपा को लूटने की स्वीकृति दे दी । वत्स के सैनिक चंपा पर टूट पड़े ।
उन्होंने किसी भी प्रासाद को शेष नहीं छोड़ा। वे राजप्रासाद में भी पहुंच गए। काकमुख ने रानी धारिणी और उसकी कन्या वसुमती का अपहरण कर लिया।
सैनिक अपनी-अपनी बहादुरी बखानते लौट रहे थे। यह मानव जाति का दुर्भाग्यपूर्ण इतिहास है कि मनुष्य दूसरे मनुष्यों को लूटकर प्रसन्नता का अनुभव करता है, दूसरों को अशांति की भट्टी में झोंककर शान्ति का अनुभव करता है ।
चंपा के नागरिकों ने क्या अपराध किया था? उन्होंने शतानीक या उसकी सेना का क्या बिगाड़ा था? उसका अपराध यही था कि वे विजेता देश के नागरिक नहीं थे, पराजित देश के नागरिक थे । शक्तिहीनता क्या कम अपराध है ? शक्तिहीन निरपराध को हमेशा अपराधी के कठघरे में खड़ा होना पड़ा है। दधिवाहन की सेना शतानीक की सेना के सामने अल्पवीर्य थी। शतानीक की सेना पूरी सज्जा के साथ आक्रामक होकर आई थी। दधिवाहन की सेना युद्ध के लिए तैयार नहीं थी । प्रमाद क्या कम अपराध है। जो अपने दायित्व के प्रति जागरूक नहीं होता, उसे सदा यातनाएं झेलनी पड़ी हैं।
विजेता का उन्माद शक्ति प्रदर्शन किए बिना कब शान्त होता है ? इस अ - हेतुक शक्ति- प्रर्शन में हजारों-हजारों नागरिकों को काल - रात्रि भुगतनी पड़ी। फिर राजप्रासाद कैसे बच पाता और कैसे बच पाता उसका अन्तःपुर ? धारिणो और वसुमती को उसी मानवीय क्रूरता के 'अट्टहास का शिकार होना पड़ा।
काकमुख ने अपने पराक्रम का बखान इन शब्दों में किया, 'मैंने धन की ओर ध्यान नहीं दिया। मैं सीधा राजप्रासाद में पहुंचा। वहां मेरा कुछ प्रतिरोध भी हुआ। पर मैं उसे चीरकर अन्तःपुर में पहुंच गया और महारानी को ले आया । मुझे पत्नी की आवश्यकता है। यह मेरी पत्नी होगी । एक कन्या को भी ले आया हूं। यदि धन आवश्यक होगा तो उसे बेच दूंगा।'
काकमुख की बातें सुन महारानी का सुकुमार मन उद्वेलित हो गया। उसके हृदय पर तीव्र आघात लगा । वह मूर्छित हो गई। वसुमती ने अपनी मां को सचेत करने का प्रयत्न किया। पर उसकी मूर्च्छा नहीं टूटी। उसके हृदय की गति व्यथा को रोकने में अक्षम होकर स्वयं रुक गई। काकमुख ने महारानी का अपहरण किया और उसकी वाणी ने महारानी के प्राणों का अपहरण कर लिया। अब शेष रह गया, उसका निष्प्राण और निस्पन्द शरीर ।
महारानी के महाप्रयाण ने काकमुख का हृदय बदल दिया। उसकी आंखें खुल गई । उसका मानवीय रूप जाग उठा । उसने अपने कार्य के प्रति सोचा । उसे लगा, जैसे महारानी का अपहरण करते समय वह उन्माद में धुत्त था । प्रत्येक आवेश मनुष्य को धुत्त कर देता है। अब उन्माद के उतर जाने पर उसे अपनी और अपने साथियों की चेष्टा की
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