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________________ अनुकूल उपसर्गों के अंचल में / ५७ सहमत नहीं हुए। नट ने कहा, 'क्या आप नाटक देखने को उत्सुक नहीं हैं?' 'नहीं।' 'क्यों, क्या नाटक अच्छा नहीं लगता?' 'अपनी-अपनी दृष्टि है। 'क्या ललितकला के प्रति दृष्टि-भेद हो सकता है?' 'ऐसा कुछ भी नहीं जिसके प्रति दृष्टि-भेद न हो सके।' 'यह अज्ञानी लोगों में हो सकता है, पर आप तो ज्ञानी हैं।' 'ज्ञानी सत्य की खोज में लगा रहता है। यह विश्व के कण-कण में अभिनय का अनुभव करता है। वह अणु-अणु में प्रकम्पन और गतिशीलता का अनुभव करता है। उसकी रसमयता इतनी व्याप्त हो जाती है कि उसके निए नीरस जैसा कुछ रहता ही नहीं। अन्य सब शास्त्रों को जानने वाला क्लेश का अनुभव करता है। अध्यात्म को जानने वाला रस का अनुभव करता है। गधा चन्दन का भार ढोता है, और भाग्यशाली मनुष्य उसकी सुरभि और शीतलता का उपभोग करता है।' नट का सिर श्रद्धा से नत हो गया। वह प्रणाम कर रंगशाला में चला गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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