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________________ ध्यान की ब्यूह-रचना / ४७ सूरज अपनी असंख्य रश्मियों के लिए हुए विजय की लालिमा से फिर प्रदीप्त हो उठा। भूख-विजय भगवान् महावीर दीर्घ-तपस्वी कहलाते हैं। उन्होंने बड़ी-बड़ी तपस्याएं की हैं। उनका साधना-काल साढ़े बारह वर्ष और एक पक्ष का है। इस अवधि में उनकी उपवास-तालिका यह है - * दो दिन का उपवास - बारह बार। * तीन दिन का उपवास दो सौ उन्नीस बार। * पाक्षिक उपवास - बहत्तर बार। * एक मास का उपवास - बारह बार। * डेढ़ मास का उपवास - दो बार। * दो मास का उपवास - छह बार। * ढाई मास का उपवास - दो बार। * तीन मास का उपवास - दो बार। * चार मास का उपवास नौ बार। * पांच मास का उपवास - एक बार। * पांच मास पचीस दिन का उपवास - एक बार। * छह मास का उपवास - एक बार। * भद्रप्रतिमा-दो उपवास - एक बार। * महाभद्रप्रतिमा- चार उपवास - एक बार। * सर्वतोभद्रप्रतिमा- दस उपवास - एक बार। भगवान् ने साधनाकाल में सिर्फ तीन सौ पचास दिन भोजन किया। निरन्तर भोजन कभी नहीं किया। उपवासकाल में जल कभी नहीं पिया। उनकी कोई भी तपस्या दो उपवास से कम नहीं थी। भगवान् की साधना के दो अंग हैं - उपवास और ध्यान । हमने भगवान् की उस मूर्ति का निर्माण किया है, जिसने उपवास किए थे। जिसने ध्यान किया था, उस मूर्ति के निर्माण में हमने उपेक्षा बरती है। इसीलिए जनता के मन, में भगवान् का दीर्घ-तपस्वी रूप अंकित है। उनकी ध्यान-समाधि से वह परिचित नहीं है। 'भगवान् इतने ध्यान-लीन थे, फिर लम्बे उपवास किसलिए किए?' 'उन दिनों दो धाराएं चल रही थीं। कुछ दार्शनिक शरीर और चैतन्य में अभेद प्रस्थापित कर रहे थे। कुछ दार्शनिक उनमें भेद की प्रस्थापना कर रहे थे। महावीर भेद के १. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० ३०४, ३०५ । २. आवश्यकनियुक्ति दीपिका, पत्र १०७, १०८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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