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१.
२.
३.
४.
ताल पिशाच पराजित हो गया है।
श्वेत पंखवाला बड़ा पुंस्कोकिल । चित्र-विचित्र पंखवाला पुंस्कोकिल । रत्नमय दो मालाएं।
श्वेत गौवर्ग ।
५.
६. कुसुमित पद्मसरोवर ।
ध्यान की ब्यूह-रचना / ४५
कल्लोलित समुद्र भुजाओं से तीर्ण हो गया है ।
७.
८. तेज से प्रज्वलित सूर्य ।
९. मानुषोत्तर पर्वत अपनी आंतों से आवेष्टित हो गया है।
१०. मेरु पर्वत की चूलिका के सिंहासन पर अपनी उपस्थिति ।
• ये स्वप्न देखकर भगवान् प्रतिबुद्ध हो गए ?"
'संस्कार - दर्शन की घटनाएं क्या ज्ञात हैं ? '
ये अनेक बार घटित हुई हैं । शूलपाणि यक्ष की घटना तुम सुन चुके हो। कटपूतना व्यन्तरी और संगम देव की घटना क्या संस्कार - दर्शन की घटना नहीं हैं?'
साधना का पांचवां वर्ष चालू है। भगवान् ग्रामाक सन्निवेश से शालीशीर्ष आ रहे हैं। उसके बाहर एक उद्यान है । भगवान् उसमें आकर ध्यानस्थ हो गए हैं। माघ का महीना है । भयंकर सर्दी पड़ रही है। ठंडी हवा चल रही है। आकाश कुहासे से भरा हुआ है । सारा वातावरण कांप रहा है। हर प्राणी ऊष्मा और ताप की खोज में है।
भगवान् का शरीर निर्वस्त्र है । वे आत्मबल और योगबल से उस सर्दी में अप्रकम्प खड़े हैं। उसी समय वहां एक व्यन्तरी आयी। उसका नाम था कटपूतना । भगवान् को देखते ही उसका क्रोध उभर गया । उसने एक परिव्राजिका का रूप धारण किया । बिखरी में जल भरकर उसे भगवान् पर फेंका। भगवान् इस घटना से विचलित नहीं हुए। इस समय भगवान् को लोकावधि ( लोकवर्ती समस्त मूर्त द्रव्यों को जानने वाला अतीन्द्रिय) ज्ञान उपलब्ध हुआ।
भगवान् महावीर अबाधगति से अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रहे हैं । उनका पथ अबाध नहीं है । इस द्वन्द्व की दुनिया में क्या किसी का भी पथ अबाध होता है ? जिसकी मंजिल लम्बी है, उसे कहीं समतल मिलता है, कहीं गढे ओर कहीं पहाड़ । पर जिसके पैर मजबूत होते हैं, उसकी गति बाधित नहीं होती । वह उन सबको पार कर जाता है। साधना के आठवें वर्ष में एक बार संस्कारों ने भयंकर तूफान का रूप धारण कर लिया। यह घटना उस समय की है। जब भगवान् बहुसालक गांव के शालवन उद्यान में १. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० २७४ ।
२. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० २९२, २९३ ।
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