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________________ ४४ / श्रमण महावीर नहीं है?' 'नहीं क्यों? आचारांगसूत्र का बहुत प्रामाणिक आधार है।' 'क्या उसमें लिखा है कि भगवान् ने केवल अड़तालीस मिनट नींद ली?' 'नहीं, उसमें ऐसा नहीं है।' 'तो फिर क्या है?' 'उसमें बताया है - भगवान् प्रकाम नींद नहीं लेते थे, बहुत नहीं सोते थे। वे अधिक समय आत्मा को जागृत रखते थे। 'क्या शरीर-धारण के लिए नींद लेना जरूरी नहीं है?' 'है, इसीलिए भगवान् चिर जागरण के बाद क्षण-भर नींद ले लेते थे।२ 'क्या उन्हें नींद नहीं सताती थी?' 'ग्रीष्म और हेमंत ऋतु के दिनों में कभी-कभी नींद सताने लग जाती। एक बार रात को नींद ने आक्रमण जैसा कर दिया, तब भगवान् ने क्षण-भर नींद ली, फिर ध्यान में आरूढ़ हो गए।३ नींद आने के चार कारण माने जाते हैं – थकान, एकाग्रता, शून्यता और शिथिलीकरण । भगवान् एकाग्रता और शिथिलीकरण- दोनों की साधना करते, फिर वे नींद के आक्रमण से कैसे बच पाते? 'भगवान की एकाग्रता और शिथिलीकरण के नीचे आत्मोपलब्धि की तीव्र भावना सक्रिय थी। इसलिए नींद उन्हें सहज ही आक्रात नहीं कर पाती।' 'भगवान् ने ध्यान से नींद को जीता या उससे नींद की पूर्ति की?' 'भगवान् खड़े-खड़े ध्यान करते थे। कभी-कभी टहल लेते थे। इन साधनों से वे नींद पर विजय पा लेते थे। भगवान् बहुत कम खाते थे। कायोत्सर्ग बहुत करते थे। इसलिए उन्हें सहज ही नींद कम आती थी। सहज समाधि में प्राप्त तृप्ति नींद की आवश्यकता को बहुत ही कम कर देती थी इसलिए पूर्ति की अपेक्षा नहीं रहती।' 'भगवान् के स्वप्न-दर्शन की कोई घटना ज्ञात नहीं है?' 'नहीं, क्यों?' , 'तो मैं जानना चाहता हूं।' - 'भगवान् महावीर शूलपाणि यक्ष के चैत्य में ध्यान कर रहे थे। रात केपिछले पहर में (सूर्योदय में मुहूर्त भर बाकी था, उस समय) भगवान् को नींद आ गयी। उसमें उन्होंने दस स्वप्न देखे-' १. आयारो, ९२।५। २. आयारो, ९।२।५ । ३. आचारांगचूर्णि, पृ.३१३ । ४. साधना का पहला वर्ष ।स्थान- अस्थिकग्राम (पूर्वनाम वर्द्धमान ग्राम)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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