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४२/ श्रमण महावीर
'व्यवहार की भूमिका पर मैं अकेला कहां हूं?' 'भंते ! आप परिवार-विहीन होकर भी अकेले कैसे नहीं हैं?' 'मेरा परिवार मेरे साथ है।' 'कहां है भंते! यही जानना चाहता हूं।'
'संवर (निर्विकल्प) ध्यान मेरा पिता है। अहिंसा मेरी माता है। ब्रह्मचर्य मेरा भाई है। अनासक्ति मेरी बहन है । शांति मेरी प्रिया है। विवेक मेरा पुत्र है। क्षमा मेरी पुत्री है। उपशम मेरा घर है । सत्य मेरा मित्र-वर्ग है । मेरा पूरा परिवार निरन्तर मेरे साथ घूम रहा है, फिर मैं अकेला कैसे?'
'भंते! मुझे पहेली में मत उलझाइए। मैं अपने मन की उलझन आपके सामने रखता हूं, उस पर ध्यान दें। आपके शरीर के लक्षण आपके चक्रवर्ती होने की सूचना देते हैं और आपकी चर्या साधारण व्यक्ति होने की सूचना दे रही है। मेरे सामने आज तक के अर्जित ज्ञान की सच्चाई का प्रश्न है, जीवन-मरण का प्रश्न है। इसे आप सतही प्रश्न मत समझिए।'
'पुष्य ! बताओ, चक्रवर्ती कौन होता है?' 'भंते ! जिसके आगे-आगे चक्र चलता है।' 'चक्रवर्ती कौन होता है?' 'भंते ! जिसके पास बारह योजन में फैली हुई सेना को त्राण देने वाला छत्ररत्न होता
'चक्रवर्ती कौन होता है?'
'भंते ! जिसके पास चर्मरत्न होता है, जिससे प्रातःकाल बोया हुआ बीज शाम को पक जाता है।'
'पुष्य! तुम ऊपर, नीचे-तिरछे - कहीं भी देखो, धर्म का चक्र मेरे आगे-आगे चल रहा है। आचार मेरा छत्ररत्न है। उसमें जिस क्षण बीज बोया जाता है, उसी क्षण वह पक जाता है। क्या मैं चक्रवर्ती नहीं हूं? क्या तुम्हारे सामुद्रिक-शास्त्र में धर्म-चक्रवर्ती का अस्तित्व नहीं है? ___'भंते ! बहुत अच्छा । मेरा सन्देह निवृत्त हो गया है। अब मैं स्वस्थ होकर जा रहा
भगवान् राजगृह की ओर चल पड़े। पुष्य जिस दिशा से आया था उसी दिशा में लौट गया।
१. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० २८१, २८२ ।
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