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________________ जीवनवृत्त : कुछ चित्र, कुछ रेखाएं / १३ सुपार्श्व ने मुस्कुराकर कहा, 'कुमार! मैं यहां आऊं या तुम वहां आओ, इसमें कोई अन्तर नहीं पड़ता। जो अन्तर पड़ रहा है उसे मिटाने की बात करो।' 'मैं नहीं जानता, आपके और मेरे बीच में कोई अन्तर है, चुल्लपिता!' 'बेटे! तुम सच कहते हो। भाई के जीवनकाल में मेरे और तुम्हारे बीच में कोई अन्तर नहीं था । पर...' 'वह अब कैसे आएगा? अब तो आप ही मेरे पिता हैं' भाई की स्मृति और कुमार की मृदु उक्ति से सुपार्श्व भावविह्वल हो गए। उनकी आंखों से आंसुओं की धार बह चली। वे सिसक-सिसककर रोने लगे। वे कुछ कहना चाहते थे पर वाणी उनका साथ नहीं दे रही थी। कुमार स्तब्धजड़ित जैसे एकटक उनकी ओर निहारते रहे । सुपार्श्व कुछ आश्वस्त हुए। भावावेश को रोककर कक्ष के एक आसन पर बैठ गए । कुछ क्षणों तक वातावरण में नीरवता छा गई। ___ 'वर्द्धमान ! भाई और भाभी अब संसार में नहीं हैं - इसका सबको दुःख है। पर उस स्थिति पर हमारा वश नहीं है। कुमार! उस अवश स्थिति का लाभ उठाकर तुम घर से निकल जाना चाहते हो, यह सहन नहीं हो सकता।' 'चुल्लपिता ! मैं घर से निकल जाना कहां चाहता हूं। मैं अपने घर से निकला हुआ हूं, फिर से घर में चला जाना चाहता हूं।' 'कुमार! ऐसा मत कहो। तुम अपने घर में बैठे हो और उस घर में बैठे हो जिसमें जन्में, पले-पुसे और बड़े हुए।' 'चुल्लपिता ! क्या मेरा अस्तित्व अट्ठाईस वर्ष से ही है? क्या इससे पहले मैं नहीं था? यदि था तो यह घर मेरा अपना कैसे हो सकता है? मेरा घर मेरी चेतना है जो कभी मुझसे अलग नहीं होती। मैं अब उसी में समा जाना चाहता हूं।' 'व्यवहार क्या है, चुल्लपिता!' 'कुमार! तुम दर्शन की बातें कर रहे हो । मैं तुमसे अपेक्षा करता हूं कि तुम व्यवहार की बात करो।' 'कुमार! वज्जिसंघ का व्यवहार है - गणराज्य की परिषद् में भाग लेना और गणराज्य के शासन-सूत्र का संचालन करना।' 'चुल्लपिता ! मैं जानता हूं, यह हमारा परम्परागत कार्य है । पर मैं क्या करूं, हिंसा और विषमता के वातावरण में काम करने के लिए मेरे मन में उत्साह नहीं है।' कुमार के मृदु और विनम्र उत्तर से सुपार्श्व कुछ आश्वस्त हुए। उन्होंने वार्ता को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा। वे कुमार को गहराई से सोचकर फिर बात करने की सूचना दे अपने कक्ष में चले गए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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