________________
२५६ / श्रमण महावीर
भगवान् प्रवचन करते-करते ही निर्वाण को प्राप्त हो गए। उस समय रात्रि चार घड़ी शेष थी।
वह ज्योति मनुष्य लोक से विलीन हो गई जिसका प्रकाश असंख्य लोगों के अंत:करण को प्रकाशित कर रहा था। वह सूर्य क्षितिज के उस पार चला गया जो अपने रश्मिपूंज से जन-मानस को आलोकित कर रहा था।
___मल्ल और लिच्छवि गणराज्यों ने दीप जलाए। कार्तिकी अमावस्या की रात जगमगा उठी। भगवान् का निर्वाण हुआ उस समय क्षणभर के लिए समुचे प्राणी-जगत् में सुख की लहर दौड़ गई।
ईसा पूर्व ५९९(विक्रम पूर्व ५४२) में भगवान् का जन्म हुआ। ईसा पूर्व ५६९(विक्रम पूर्व ५१२) में भगवान् श्रमण बने। ईसा पूर्व ५५७(विक्रम पूर्व ५००) में भगवान् केवली बने। ईसा पूर्व ५२७(विक्रम पूर्व ४७०) में भगवान् निर्वाण हुआ।
३. कल्पसूत्र, सूत्र १४७; सुबोधिका टीका- चतुर्घटिकावशेषायां रात्रौ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org