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सहयात्रा : सहयात्री / २४३
गया। उसने शालिभद्र को देखने की इच्छा प्रकट की। भद्रा ने सम्राट को अपने घर पर आमंत्रित किया।
सम्राट् भद्रा के घर पहुंचा। उसका ऐश्वर्य देख वह चकित रह गया। भद्रा ने शलिभद्र से कहा - 'बेटे! नीचे चलो! तुम्हें देखने के लिए सम्राट् आया है।' शालिभद्र नहीं जानता था कि सम्राट् क्या होता है। वह अपने ही कार्य और वैभव में तन्मय था। उसने अपनी धुन में कहा - 'माँ ! तुम जो लेना चाहो वह ले लो। मुझे क्या पूछती हो?' भद्रा ने कहा - 'बेटे! चुप रहो । यह कोई खरीदने की वस्तु नहीं है। यह मगध का सम्राट है, अपना स्वामी है।' स्वामी का नाम सुनते ही शालिभद्र का माथा ठनक गया। उसकी आत्मा प्रकंपित हो गई। उसकी स्वतंत्रता पर पाला पड़ गया। वह अनमना होकर सम्राट के पास गया। सम्राट् ने उसे अपने पास बैठा लिया। उससे सौहार्दपूर्ण बातें की। वह कुछ ही क्षणों में खिन्न सा हो गया। और मन ग्लानि से भर गया। उसकी स्वतंत्रता के बांध में गहरी दरार हो गई।
शालिभद्र का नवनीत-सा सुकुमार शरीर, स्वर्गीय वैभव और सुखमय जीवन । इन सबसे ऊपर थी उसकी स्वतंत्रता की अनुभूति । वह उसी के दर्पण में अपने जीवन का प्रतिबिम्ब देखता था। उस पर चोट लगते ही उसका स्वप्न चूर हो गया। वह स्वतंत्रता नहीं मिल सकती। वह मिल सकती है प्रासाद का विसर्जन करने पर । महावीर ने प्रासादविसर्जन का मंत्र दिया है। शालिभद्र ने अनगार होने का संकल्प कर लिया।
शालिभद्र का संकल्प सुन भद्रा शून्य हो गई। उसने पुत्र के प्रासाद में रखने के तीव्र प्रयत्न किए। पर वह सफल नहीं हो सकी। उसने हार कर कहा - 'बेटे! तुम घर में न रहो तो कम से कम मेरी एक बात अवश्य स्वीकार करो । एक-एक दिन में एक-एक पत्नी को छोड़ो, इस प्रकार बत्तीस दिन फिर घर में रहो।' शालिभद्र ने माता का अनुरोध स्वीकार कर लिया। ____शालिभद्र की बहन थी सुन्दरी। उसके पति का नाम था धन्य। उसने देखा सुन्दरी की आँखों से आँसू टपक रहे हैं। उसने आँसू का कारण पूछा । सुन्दरी ने कहा- 'मेरा भाई प्रतिदिन एक-एक भाभी को छोड़ रहा है। उसकी स्मृति होते ही मेरी आँखों में आंसू छलक पड़े।'
धन्य ने सुन्दरी की बात सुनकर कहा – 'तेरा भाई कायर है । जब घर छोड़ना ही है तब एक-एक पत्नी को क्या छोड़ना?'
सुन्दरी ने व्यंग्य में कहा - 'कहना सरल है, करना सरल नहीं है।'
'क्या तुम परीक्षा चाहती हो? यह कहकर उसने आठों पत्नियों को एक साथ छोड़ दिया।'
'शालिभद्र और धन्य - दोनों भगवान् महावीर के पास दीक्षित हो गए।"
१. त्रिषष्टिशलाकापुरूषचरित्र १०।१०।५७-१४८ ।
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