________________
२३४ / श्रमण महावीर
सुना है कि आपके पास बहुत रत्न हैं?' 'तुमने सही सुना है । '
'मैं उन्हें देखना चाहता हूं ।'
4
'क्या सच कह रहे हो ?'
'झूठ क्यों कहूंगा?"
'तो क्या सचमुच रत्नों को देखना चाहते हो ?'
'बहुत उत्सुक हूं, यदि आप दिखाएं तो ।'
'मैं कौन दिखाने वाला। तुम देखो, वे तुम्हारे पास भी हैं । ' 'मेरे पास कहां हैं भंते ? '
'देखना चाहो तो तुम्हारे पास सब कुछ है ।'
'कहां है? आप बतलाइए। मैं अवश्य देखना चाहता हूं।'
'तुम अब तक बाहर की ओर देखते रहे हो, अब भीतर की ओर देखो। देखो, और फिर गहराई में जाकर देखो।'
किरात की अन्तर्यात्रा शुरू हो गई। वह भीतर में प्रवेश कर गया। उसने रत्नों की ऐसी ज्योति पहले कभी नहीं देखी थी। वह ज्योति की उस रेखा पर पहुंच गया जहां पहुंचने पर फिर कोई तमस् में नहीं लौटता। वह सदा के लिए महावीर का सहयात्री बन
गया।
२. अरब के दक्षिणी प्रान्त में आर्द्र नाम का प्रदेश था। वहां आर्द्रक नाम का राजा था। उसका पुत्र था आर्द्रकुमार। एक बार सम्राट् श्रेणिक ने महाराज आर्द्रक को उपहार भेजा । आर्द्रकुमार पिता के पास बैठा था । उसने सोचा, श्रेणिक मेरे पिता का मित्र है । उसका पुत्र मेरा मित्र होना चाहिए। उसने दूत को एकांत में बुलाकर पूछा । दूत ने अभयकुमार का नाम सुझाया। आर्द्रकुमार ने अभयकुमार के लिए उपहार भेजा । अभयकुमार ने उसका उपहार स्वीकार किया। दोनों मित्र बन गए। अभयकुमार ने बदले में कुछ धर्मोपकरण भेजे । उन्हें देख आर्द्रकुमार को पूर्वजन्म की स्मृति हो गई। आर्द्रकुमार अवकाश देखकर अपने देश से निकल गया । वह वासना के तूफानों और विचारों के जंगलों को पार कर भगवान् की यात्रा का सहभागी हो गया।
३. वारिषेण का पिता था श्रेणिक और माता थी चिल्लणा । वह बहुत धार्मिक था । चतुर्दशी का दिन आया। उसने श्मशान में जाकर ध्यान शुरू किया।
राजगृह में विद्युत् नाम का चोर रहता था। वह नगरवधू सुन्दरी से प्रेम करता था । एक दिन सुन्दरी ने कहा- 'क्या तुम मुझसे सच्चा प्रेम करते हो?'
'तुम्हें यह संदेह क्यों हुआ ?'
१. आवश्यकचूर्णि, उत्तरभाग, पृ० २०३, २०४ | २. सूयगडो, २।६, वृत्ति पत्र १३७ - १३९ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org