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________________ ४२ | पारदर्शी दृष्टि : व्यक्त के तल पर अव्यक्त का दर्शन हम जिस जगत् में जी रहे हैं, उसमें तीन काल हैं - अतीत, अनागत और वर्तमान। भारतीय दर्शन ने बहुत पहले से इनके सम्बन्ध की खोज शुरू की। यह खोज समन्वय की प्रस्थापना है। एक काल में अनेक घटनाएं घटित होती हैं, उनमें साहचर्य का सम्बन्ध होता है। कुछ घटनाएं कालक्रम से घटित होती हैं, उनमें पौर्वापर्य का सम्बन्ध होता है। एक घटना दूसरी घटना को निर्मित करती है, उनमें कारण-कार्य का सम्बन्ध होता है। __व्यक्ति में अनेक गुण एक साथ रहते हैं । जो गुण व्यक्त होता है, उसे हम जान लेते हैं, शेष को नहीं जान पाते। हम व्यक्ति का मूल्यांकन व्यक्त पर्याय के आधार पर करते हैं। इसीलिए हमारा मूल्यांकन वर्तमान में ही सही होता है। दूसरा पर्याय जैसे ही व्यक्त होता है, वैसे ही अतीत का मूल्यांकन असत्य हो जाता है। महावीर इस मामले में साधारण मनुष्य नहीं थे। वे व्यक्ति को व्यक्त पर्याय में ही नहीं देखते थे, उसमें छिपी संभावनाओं में भी देखते थे। अतीत और भविष्य के अतल उनके सामने तल पर आ जाते थे। एक दिन गहरी वर्षा हो रही थी। उस समय कुमार-श्रमण अतिमुक्तक शौच के लिए बाहर गए । उनके पास एक पात्र था। रास्ते में एक नाला बह रहा था। उन्होंने मिट्टी की पाल बांध पानी को रोक लिया। उसमें अपना पात्र डाल दिया। वह पात्र पानी में तैरने लगा। मेरी नाव तैर रही है, मेरी नाव तैर रही है' - यह कहकर अतिमुक्तक बालसुलभ क्रीड़ा करने लगे। कुछ स्थविर उसी मार्ग से आ रहे थे। उन्होंने अतिमुक्तक को नाव तैराते देखा। वे सीधे भगवान् महावीर के पास पहुंचे। भगवान् का अभिवादन कर व्यंग्य के स्वर में बोले - भंते ! कुमार-श्रमण अतिमुक्तक आपका शिष्य है। वह कब मुक्त होगा? कितने जन्मों के बाद मुक्त होगा? भगवान् ने कहा - 'कुमार-श्रमण अतिमुक्तक इसी जन्म में मुक्त होगा। तुम उसका उपहास मत करो । उसकी शक्तियां शीघ्र ही विकसित होंगी। तुम उसे सहारा दो। उसका सहयोग करो। उसकी अवहेलना मत करो।' भगवान् की वाणी सुन सभी स्थविर गम्भीर हो गए। वे देख रहे थे व्यक्त को। उसके नीचे बहती हुई अव्यक्त की धारा उन्हें नहीं दीख रही थी। इसलिए अतिमुक्तक के प्रमाद-क्षण को देखकर उनके मन में उफान आ गया। भगवान् ने भविष्य की सम्भावना का छींटा डालकर उसे शान्त कर दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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