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२१६ / श्रमण महावीर
इन्द्र स्वर्ग में बैठा-बैठा यह सब देख रहा था। अपने वचन की सचाई प्रमाणित होने पर वह वर्धमान के पास आया। उसकी स्तुति कर इन्द्र ने वर्धमान का महावीर नाम कर दिया ।
इस घटना को आप भागवत की निम्नलिखित घटना के सन्दर्भ में पढ़िए - कृष्ण और बलभद्र ग्वाल बालकों के साथ आपस में एक-दूसरे को घोड़ा बनाकर उस पर चढ़ने का खेल खेल रहे थे। उस समय कंस द्वारा भेजा हुआ प्रलंब नामक असुर उस खेल में सम्मिलित हो गया । वह कृष्ण और बलभद्र को उठा ले जाना चाहता था। वह बलभद्र का घोड़ा बनकर उन्हें दूर ले गया। उसने प्रचण्ड विकराल रूप प्रकट किया। बलभद्र इस घटना से भयभीत नहीं हुए। उन्होंने एक मुष्टि-प्रहार किया। उससे असुर के मुंह से खून गिरने लगा। अन्त में उसे मार डाला ।
उक्त दोनों घटनाओं में कवि की लेखनी का चमत्कार है। महावीर के पराक्रम को अभिव्यक्ति देने के लिए कवि ने कुछ रूपकों की कल्पना की है। रूपक सत्य है या असत्य इस बात से कवि को कोई प्रयोजन नहीं है। उसका जो प्रयोजन है, वह सत्य है। महावीर का पराक्रम अद्भुत और असाधारण था, इस रहस्य का उद्घाटन ही कवि का प्रयोजन है । यह सत्य है ।
सत्य की दृष्टि प्राप्त होने पर तथ्य की चढ़ाई सहज-सरल हो जाती है
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१. भागवत, १०।२०।१८-३० ।
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