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क्रान्ति का सिंहनाद / १३३
मुनि होता है ज्ञान से। तापस होता है तपस्या से।
'जैसे पोली मुट्ठी और मुद्रा-शून्य खोटा सिक्का मूल्यहीन होता है, वैसे ही व्रतहीन साधु मूल्यहीन होता है । वैडूर्य मणि की भांति चमकने वाला कांच जानकार के सामने मूल्य कैसे पा सकता है?
एक व्यक्ति ने भगवान् से पूछा - 'भन्ते ! साधुत्व और वेश में क्या कोई सम्बन्ध है?'
भगवान् ने कहा - 'कोई भी सम्बन्ध नहीं है, यह मैं कैसे कहूँ? वेश व्यक्ति की आन्तरिक भावना का प्रतिबिम्ब है। जिसके मन में निस्पृहता के साथ-साथ कष्टसहिष्णुता बढ़ती है, वह अचेल हो जाता है। यह अचेलता का वेश उसके अन्तरंग का प्रतिबिम्ब है।' ___ 'भंते ! कुछ लोग निस्पृहता और कष्ट-सहिष्णुता के बिना भी अनुकरण बुद्धि से अचेल हो जाते हैं । इसे मान्यता क्यों दी जाए?'
भगवान् – 'इसे मान्यता नहीं मिलनी चाहिए। पर अनुकरण किसी मौलिक वस्तु का होता है । मूलतः वेश आंतरिक भावना की अभिव्यक्ति है। उसका अनुकरण भी होता है, इसलिए साधुत्व और वेश में सम्बन्ध है, यह भी मैं कैसे कहं ।'
मैं चार प्रकार के पुरुषों का प्रतिपादन करता हूं: १. कुछ पुरुष वेश को नहीं छोड़ते, साधुत्व को छोड़ देते है। २. कुछ पुरुष साधुत्व को नहीं छोड़ते, वेश को छोड़ देते हैं। ३. कुछ पुरुष साधुत्व और वेश - दोनों को नहीं छोड़ते। ४. कुछ पुरुष साधुत्व और वेश - दोनों को छोड़ देते हैं।
गोष्ठी के दूसरे सदस्य ने पूछा – 'भंते ! आज हमारे देश में बहुत लोग साधु के वेश में घूम रहे हैं। हमारे सामने बहुत बड़ी समस्या है, हम किसे साधु मानें और किसे असाधु?'
भगवान् ने कहा - 'तुम्हारी बात सच है। आज बहुत सारे असाधु साधु का वेश १. उत्तरज्झयणाणि, २५ । २९,३०:
न वि मुंडिएण समणो, न ओंकारेण बम्भणो । न मुणी रण्णवासेणं, कुसचीरेण न तावसो । समयाए समणो होइ, बंम्भचेरेण बम्भणो ।
नाणेण य मुणी होइ, तवेणं होइ तावसो ॥ २. उत्तरज्झयणाणि, २० । ४२ :
पोल्ले व मट्ठी जह से असारे, अयिन्तए कूडकहावणे वा ।
राढामणी वेरुलियप्पगासे, अमहग्धए होइ य जाणएसु ॥ ३. ठाणं ४।४१९।
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