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१२२ / श्रमण महावीर
कर लेते थे। आज स्थिति बदल गई है। वर्तमान के मुनि वक्र-प्रज्ञ हैं। ये आशय की अपेक्षा शब्दों को पकड़ने में चतुर हैं। आपको ज्ञात ही है कि आज आपकी परम्परा के अनेक मुनि यह कहने लग गए हैं कि भगवान् पार्श्व ने अब्रह्मचर्य का निषेध नहीं किया है। इस धारणा से उनकी मानसिक शिथिलता को पनपने का अवसर मिला है। भगवान् महावीर ने इस स्थिति को देख 'बहिद्धादान-विरमण' महाव्रत का विस्तार कर ब्रह्मचर्य
और अपरिग्रह - इन दो स्वतन्त्र महाव्रतों की स्थापना कर दी। अब्रह्मचर्य की वृत्ति को प्रश्रय देने के लिए जिस कुतर्क का प्रयोग किया जाता था, उसका इस स्थापना के द्वारा समूल उन्मूलन हो गया। यह हमारे धर्म की द्विधा नहीं है। यह है वर्तमान मानस का उपचार।
केशी ने बड़ी शालीनता के साथ कहा- गौतम! आपने महाव्रतों के विस्तार के बारे में जो कहा, वह मुझे उचित लगता है। मैं उसका समर्थन करता हूं और मैं देख रहा हूं कि मेरे शिष्य भी उसका समर्थन कर रहे हैं। पर भगवान् महावीर ने यह वेश की द्विधा क्यों की? उससे आपकी धारा श्रमण-परम्परा की मुख्य धारा से पृथक् होकर प्रवाहित होने लगी है। भगवान् पार्श्व के तीर्थ की वेशभूषा को स्वीकार करने में भगवान् महावीर के सामने क्या कठिनाई थी?' ____ गौतम ने बताया - 'युग-चेतना ने मुनि की वेषभूषा के पुराने मूल्यों को अस्वीकार कर दिया है। मुनि के लिए रंगीन और बहुमूल्य वस्त्रों का उपयोग अब मान्य नहीं है। भगवान् महावीर ने वर्तमान की समस्या का अध्ययन कर वेषभूषा में परिवर्तन किया।'
'जीवन-यात्रा का निर्वाह वेश-धारण का प्रयोजन है। जनता को उसके मुनि होने की प्रतीति हो, यह भी उसका प्रयोजन है। वेश केवल प्रयोजन की निष्पत्ति है, मुक्ति का साधन नहीं है। उसके साधन हैं - ज्ञान, दर्शन और चारित्र । इस विषय में भगवान् पार्श्व और भगवान् महावीर का पूर्ण मतैक्य है।'
भगवान् महावीर ने देखा - वर्तमान के मुनि वेश में कुछ आसक्त होते जा रहे हैं। मुनि-जीवन आसक्ति को क्षीण करने के लिए है, फिर उसका वेश आसक्ति को बढ़ाने वाला क्यों होना चाहिए? इस चिंतन के आधार पर भगवान् ने अवस्त्र रहने का विधान किया और कोई अवस्त्र न रह सके उसके लिए अल्पमूल्य वाले अल्पवस्त्र रखने का विधान किया है। यह द्विधा का प्रयत्न नहीं है, यह मुख्य धारा से पृथक्, चलने का प्रयत्न नहीं है, किन्तु उसे इस दिशा की ओर मोड़ने का प्रयत्न है।"२
केशी के शिष्यों का चित्त समाहित हो गया। उनके मन में एक नई स्फुरणा का उदय हुआ। केशी स्वयं बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने शिष्यों की भावना को पढ़ा और महावीर के तीर्थ में सम्मिलित होने का प्रस्ताव रख दिया। यह गौतम की बहुत बड़ी सफलता थी। महावीर के शासन ने एक नया मोड़ लिया। एक प्राचीन तथा प्रभावी स्रोत १. उत्तरज्झयणाणि, २३ । २३-२८ । २. उत्तरज्झयणाणि, २३ । २९-३४ ।
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