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________________ १०२ / श्रमण महावीर ३. . जो मुनि एक वस्त्र से काम नहीं चला सकें वे दो वस्त्र और एक पात्र रखें। ४. जो मुनि दो वस्त्र से काम न चला सकें वे तीन वस्त्र और एक पात्र रखें । ५. जो मुनि लज्जा को जीतने में समर्थ हों किन्तु सर्दी को सहने में समर्थ न हों वे ग्रीष्म ऋतु के आने पर विवस्त्र हो जाए । ६. वस्त्र रखने वाले मुनि रंगीन और मूल्यवान वस्त्र न रखें। ७. मुनि के निमित्त बनाया या खरीदा हुआ वस्त्र न लें । दिगम्बर परम्परा आज भी वस्त्र न रखने के पक्ष में है । श्वेताम्बर परम्परा वस्त्र रखने के पक्ष में है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि श्वेताम्बर परम्परा में उत्तरोत्तर वस्त्रों और पात्रों की संख्या में वृद्धि हुई है । भोजन और विहार भोजन के विषय में विधान यह था १. मुनि रात को न खाए । २. सामान्यतया दिन में बारह बजे के पश्चात् एक बार खाए । ३. यदि अधिक बार खाए तो पहले पहर में लाया हुआ भोजन चौथे पहर में न खाये । करे । ४. बत्तीस कौर से अधिक न खाए । ५. मादक और प्रणीत वस्तुएं न खाए । माधुकरी-चर्या द्वारा प्राप्त भोजन ले, अपने निमित्त बना हुआ भोजन स्वीकार न ७. लाकर दिया हुआ भोजन स्वीकार न करे । भगवान् पार्श्व के शिष्यों के लिए परिव्रजन की कोई मर्यादा नहीं थी। वे एक गांव में चाहे जितने समय तक रह सकते थे। भगवान् महावीर ने इसमें परिवर्तन कर नवकल्पी विहार की व्यवस्था की। उसके अनुसार मुनि वर्षावास में एक गांव में रह सकता है। शेष आठ महीनों में एक गांव में एक माह से अधिक नहीं रह सकता । पात्र भगवान् महावीर दीक्षित हुए तब उनके पास कोई पात्र नहीं था । भगवान् ने पहला भोजन गृहस्थ के पात्र में किया । भगवान् ने सोचा यह पात्र कोई मांजेगा, धोएगा। यह समारम्भ किसके लिए होगा? मेरे लिए दूसरे को यह क्यों करना पड़े? उन्होंने पात्र में भोजन करना छोड़ दिया । फिर भगवान् पाणि- पात्र हो गए - हाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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