________________
८६/ श्रमण महावीर
बिना वापस चले आना। लोग हैरान थे। समूचे नगर में इस बात की चर्चा फैल गई। पांचवां महीना पूरा का पूरा उपवास में बीत गया । छठे महीने के पचीस दिन चले गए।
नगर के लोग भगवान् के भोजन का समाचार सुनने को पल-पल अधीर थे। उनकी उत्सुकता अब अधीरता में बदल गई थी। सब लोग अपना-अपना आत्मालोचन कर रहे थे। महाराज शतानीक ने भी आत्मालोचन किया। कौशाम्बी पर आक्रमण और उसकी लूट का पाप उनकी आंखों के सामने आ गया। महाराज ने सोचा - हो सकता है, भगवान् मेरे पापों का प्रायश्चित कर रहे हों।
चन्दना को अतीत की स्मृति हो आई। उसे अपना वैभवपूर्ण जीवन स्वप्न-सा लगने लगा। वह चम्पा के प्रासाद की स्मृतियों में खो गई। वे उड़द उसके सामने पड़े रहे।
आज छठे महीने का छब्बीसवां दिन था। भगवान् महावीर माधुकरी के लिए निकले । अनेक लोग उनके पीछे-पीछे चल रहे थे। भगवान् धनावह के घर में गए। वे रसोई में नहीं रुके । सीधे चन्दना के सामने जा ठहरे। वह देहलीज के बीच बैठी थी। उसे किसी ने आने का आभास मिला । वह खड़ी हो गई। उसने सामने देखे बिना ही कल्पना की - पिताजी लुहार को लेकर आ गए हैं। अब मेरे बन्धन टूट जाएंगे।
पर उसके सामने तो जगत् पिता खड़े हैं । उसकी आंखें सामने की ओर उठीं और उसका अन्त:करण बोल उठा; 'ओह! भगवान् महावीर आ रहे हैं।'
वह हर्षातिरेक से उत्फुल्ल हो गई। उसकी आंखों में ज्योति-दीप जल उठे। उसका कण-कण प्रसन्नता से नाच उठा। वह विपदा को भूल गई।
भगवान् उसके सामने जाकर रुके। उन्होंने देखा, यह वही वसुमती है, जिसके दैन्य की प्रतिमा मेरे मानस में अंकित है। केवल आंसू नहीं हैं। भगवान् वापस मुड़े। चन्दना की आशा पर तुषारापात हो गया। उसके पैरों से धरती खिसक गई। आंखों में आंसू की धार बह चली। वह करुण स्वर में बोली, भगवन् ! मेरा विश्वास था, तुम नारी जाति के उद्धारक हो, दास-प्रथा के निवारक हो । पर मेरे हाथ से आहार न लेकर तुमने मेरे विश्वास को झुठला दिया। इस दीन दशा में मैं तुम्हें ही अपना मानती थी। तुम मेरे नहीं हो, यह तुमने प्रमाणित कर दिया । बुरे दिन आने पर कौन किसका होता है? मैंने इस शाश्वत सत्य को क्यों भुला दिया?
चन्दना का मन आत्म-ग्लानि से भर गया। वह सिसक-सिसक कर रोने लगी।
भगवान् ने मुड़कर देखा - मेरे संकल्प की शर्ते पूर्ण हो चुकी हैं । वे फिर चन्दना के सामने जा खड़े हुए। उसने उबले हुए उड़द का आहार भगवान् को दिया। उसके मन में हर्ष का इतना अतिरेक हुआ कि उसके बन्धन टूट गए। उसका शरीर पहले से अधिक चमक उठा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org