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________________ नारी का बन्ध-विमोचन/८५ 'तपस्या कर रहे होंगे?' 'तपस्या होती तो वे भिक्षा के लिए नहीं निकलते। वे प्रतिदिन अनेक घरों में जाते हैं, किन्तु कुछ लिये बिना ही वापस चले आते हैं।' ___ 'हमारे गुप्तचरों ने यह सूचना कैसे नहीं दी?' अमात्य ने भृकुटी तानते हुए कहा, 'और मैं सोचता हूं कि महाराज शतानीक को भी इसका पता नहीं है और मेरा खयाल है कि महारानी मृगावती भी इस घटना से परिचित नहीं हैं। मैं अवश्य ही इस घटना के कारण का पता लगाऊंगा।' प्रतिहारी विजया महारानी के कक्ष में उपस्थित हो गई। महारानी ने उसकी भावभंगिमा देख उसकी उपस्थिति का कारण पूछा। वह बोली, 'देवी ! मैं नन्दा के घर पर एक महत्वपूर्ण बात सुनकर आई हूं। क्या आप उसे जानना चाहेंगी?' 'उसका किससे सम्बन्ध है?' 'भगवान् महावीर से।' "तब अवश्य सुनना चाहूंगी।' विजया ने नन्दा के घर पर जो सुना वह सब कुछ सुना दिया। महारानी का मन पीड़ा से संकुल हो गया। कुछ देर बाद महाराज अन्तःपुर में आए और वे भी महारानी की पीड़ा के संभागी हो गए। ___ महाराज शतानीक और अमात्य सुगुप्त ने इस विषय पर मन्त्रणा की। उन्होंने उपाध्याय तथ्यवादी को बुलाया। वह बहुत बड़ा धर्मशास्त्री और ज्ञानी था। महाराज ने उसके सामने समस्या प्रस्तुत की। पर वह कोई समाधान नहीं दे सका। महाराज खिन्न हो गए। उन्होंने उद्धत स्वर में कहा, 'अमात्यवर! मुझे लगता है कि हमारा गुप्तचर विभाग निकम्मा हो गया है। मैं जानना चाहता हूं, इसका उत्तरदायी कौन है? क्या मेरा अमात्य इतनी बड़ी घटना की जानकारी नहीं दे पाता? क्या मेरा अधिकारीवर्ग इतना भी नहीं जानता कि महारानी महाश्रमण पार्श्वनाथ की शिष्या हैं? क्या वह नहीं जानता कि भगवान् महावीर महारानी के ज्ञाति हैं? भगवान् हमारी राजधानी में विहार करें और उन्हें श्रमणोचित भोजन न मिले, यह सचमुच हमारे राज्य का दुर्भाग्य है । अमात्यवर! तुम शीघ्रतिशीघ्र ऐसी व्यवस्था करो जिससे भगवान् भोजन स्वीकार करें। अमात्य भगवान् के चरणों में उपस्थित हो गया। उसने महाराज, महारानी, अपनी पत्नी और समूचे नगर की हार्दिक भावना भगवान् के सामने प्रस्तुत की और भोजन स्वीकार करने का विनम्र अनुरोध किया। किन्तु भगवान् का मौन-भंग नहीं हुआ।अमात्य निराश हो अपने घर लौट आया। भगवान् की चर्या उसी क्रम में चलती रही। प्रतिदिन घरों में जाना और कुछ लिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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