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________________ ३२ प्रज्ञा की परिक्रमा की गंगा बनकर जन-जन का पाप प्रक्षालित करती है। स्वाध्याय से लेखन, वक्तृत्व और नये-नये विज्ञान के उन्मेष प्रस्फुटित होते हैं। स्वाध्याय कैसे करें पुस्तक या किसी ग्रन्थ का पाठ करना ही स्वाध्याय नहीं है। स्वाध्याय का यह साधारण प्रकार है। स्वाध्याय के लिए परम्परा कहती है, वाचना, पृच्छना, पुनःस्मरण, अनुप्रेक्षा, धर्मकथा, किसी ग्रन्थ का पारायण करना, उसके सम्बन्ध में पूछना, उसका पुनःपुनः स्मरण करना, अर्थ का चिन्तन करना, धर्मकथा करना ये स्वाध्याय के प्रकार हैं। इन सभी प्रकार में से किसी वस्तु एवं घटना विशेष के सम्बन्ध में जानना, पूछना उसे पुनः-पुनः स्मरण करना, उसके अर्थ का चिन्तन करना धर्म को सरलता से समझना। स्वाध्याय के लिए ये प्राचीन परम्परागत विधियां है। साथ ही प्राचीन आचार्यों ने किसी तथ्य या विचार को जानने के लिए अपृथक्त्वानुयोग की पद्धति दी। जिसमें गुरु शिष्य को ग्रंथ या विषय को कंठस्थ करवा देते थे। फिर उसको विभिन्न स्तरों पर वाचना आदि के द्वारा सरलता से व्याख्यायित करते थे। उस समय तक सिद्धान्त एवं प्रयोग दोनों विधियों से शिष्य ज्ञान का नियोग करते थे। ___ मध्यकाल में यह परम्परा लागू हो गई है कि जिस विषय के सम्बन्ध में जानना हो उस सन्दर्भ के ग्रन्थों का पठन पाठन कर लेते, किन्तु प्रायोगिक विधियां लुप्तप्राय हो गई। उसे पुनर्जीवित करना होगा। सिद्धान्तों के साथ प्रयोग को साकार किया जाये। प्रयोग के बिना केवल सिद्धान्त पक्ष का संकल्प ज्ञान भले हो जाए, किन्तु विज्ञान नहीं बन सकता। बिना विज्ञान के कोरा स्वाध्याय, स्वाध्याय नहीं केवल जानकारियों का विश्लेषण मात्र होगा। "स्वाध्याय कैसे करें" का सरल उत्तर होगा-किसी विषय का स्वाध्याय करते समय परिपार्श्व विषयों की पूरी जानकारी एवं प्रयोगों को पूर्ण रूप से स्वीकृति देनी समर्थित होगी। ०००० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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