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प्रज्ञा की परिक्रमा
की तो मैंने देखा भूरे रंग की अनगनित चींटियां थीं। मैं कुछ पीछे हटकर वंदना करने बैठी कि सारी चींटियां गायब हो गयी, परन्तु आसन पर पड़े रक्त के धब्बे आज भी सुरक्षित हैं ।
एक दिन तेले की तपस्या में ध्यानस्थ थी । मेरे कंधे पर बिल्ली आकर T बैठ गयी। घण्टों तक वह बैठी रही। उस समय मुझे काफी भार महसूस हो रहा था, साथ ही असहनीय वेदना भी हो रही थी। मैं शान्त भाव से सब कुछ सहन कर रही थी । ध्यान संपन्न हुआ, तब वह कूदकर ऊपर चली गई ।
इसी प्रकार एक बहिन को किसी मैली आत्मा ने घेर लिया। मैं पांच दिन की तपस्या कर उसके कष्ट निवारण के लिए महामंत्र का जाप करने लगी। मैं अलग कमरे में रहकर निरन्तर जाप करती। तीसरे दिन वह यह कहते हुए चली गई कि मैं यहां नहीं रह सकती । जाते-जाते उसने मेरे पांव की एड़ी को काट खाया। उस बहन की बीमारी एवं उस पर होने वाले उपद्रव शांत हो गये ।
प्रश्न- क्या कोई और भी विशेष घटना घटी ?
उत्तर - मैंने ३१ दिन की तपस्या की । जप, ध्यान निरन्तर चल रहा था । एक दिन रात्रि में मैं ध्यान में खड़ी थी कि सारे शरीर में एक विधुत - प्रकम्पन सा हुआ। मस्तक पर विशेष सक्रियता से एक झटका सा लगा। मेरा सूक्ष्म शरीर इस तरह छोड़कर दिव्य यात्रा पर चल पड़ा। दिव्य लोक के चित्र थे । वहां की दिव्यता देखकर मैं विस्मित रह गई। मेरा देवलोक में भ्रमण करता हुआ विभिन्न दृश्यों को देखकर जब वापस लौटा तब पुनः उसी प्रकार वह शरीर में प्रवेश कर गया। इसके पश्चात् मुझे चेतना का अनुभव हुआ। ऐसी घटना तपस्या के बाद पन्द्रह-बीस बार हुई |
शरीर और आत्मा की भिन्नता का अनुभव भी होने लगा । आत्मा ज्योतिर्मय अण्डाकार प्रतीत होती है । मेरी साधना गतिशील बनी रहे यही मेरी इच्छा है। मैंने इन सब घटनाओं का उल्लेख आपके पूछने पर ही किया है। यह सब गुरुदेव की कृपा है, वे मुझ जैसी अबोध का मार्ग-दर्शन करते हैं। गुरुजी की कृपा से सब कुछ है। उन्हीं की दी हुई शक्ति ही काम कर रही है । मैं तो कुछ भी नहीं हूं।
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