SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८ तनाव : कारण और निवारण तनाव विश्व की विकटतम समस्या है। इसने व्यक्ति के व्यक्तित्व को खण्डित किया है। तनाव का एक कारण है भोग, कामना, कुछ उपलब्ध होने की अभीप्सा । वह धन की हो, रूप की हो, व्यक्तित्व की हो, पद की हो, पाप की हो या पुण्य की हो। जो नहीं है, उसे प्राप्त करना चाहते हैं। वह चाह, विभिन्न मार्गों से विभिन्न रूपों में, अन्तःकरण को आन्दोलित करती है। यह आन्दोलन ही तनाव का सृजनहार बनता है। व्यक्ति की कामनाएं पूरी नहीं होती । अतृप्त कामनाएं अन्तर्द्वन्द्व को उत्पन्न करती हैं। वह द्वन्द्व राग और द्वेष में परिणित होता है। राग और द्वेष कषाय को प्रगाढ़ बनाते हैं । कषाय से मन, वाक् और काया की प्रवृत्ति का चक्र संचालित होता है । प्रवृत्ति चक्र ही बन्धन और तनाव लाता है। कर्म और प्रतिकर्म शरीर की रचना की अपनी विशिष्टता है कि उसमें तनाव विर्सजन के लिए विश्राम, निद्रा आदि की व्यवस्था है। व्यक्ति उससे तनाव मुक्त बनता है। जीवनयात्रा को निर्वहन करने के लिए व्यक्ति को कुछ कर्म करना ही पड़ता है। कर्म, प्रतिकर्म को उत्पन्न करता है। प्रतिकर्म संस्कार अथवा आदत का रूप लेता है। यह आदत पुनः पुनः उस कर्म की ओर प्रेरित करती है । कर्म, राग-द्वेष से मुक्त विशुद्ध रहता है तब प्रति कर्म को पैदा नहीं करता, अपितु पीछे जो कर्म-संस्कार रूप में हैं उनको जर्जरित बना देता है । तनाव केवल शारीरिक स्थिति ही नहीं है। शरीर का यन्त्र तो केवल उसकी अभिव्यक्ति एवं ग्रहण करने का साधन मात्र है । कषाय से प्रेरित अतृप्त चित्त पदार्थ को पाने के लिए आतुर बना रहता है। प्रिय पदार्थ की उपलब्धि, आसक्ति को उत्पन्न करती है। अप्रिय पदार्थ विद्वेष उत्पन्न करता है । प्रिय घटना के प्रत्यावर्तन के लिए चित्त प्रेरित होता है। वहां अप्रिय घटना से चित्त प्रभावित होता है। चैतन्य को तटस्थ, साक्षी, दृष्टा बनाना ही तनाव मुक्ति की प्रक्रिया Jain Education International — For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy