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सत्ता, शासन और अनुशासन की अर्थयात्रा
सत्ता जिसके हाथ में वे क्या नहीं कर सकते।
आकाश से तारे तोड़कर, जमीं पर ला सकते।। उपरोक्त पंक्तियां सत्ता की शक्ति को अभिव्यक्ति देने मानस में उभरी थी। सचमुच सत्ता की शक्ति से कोई इंकार नहीं हो सकता। सत्ता ऐसा सोमरस है जिसे व्यक्ति पीकर उन्मत्त हो जाता है। वह ऐसा बल है जो अकल्पित को साकार कर देता है। सत्ता स्वेच्छाचार को उत्पन्न करता है। स्वेच्छाचार से स्वार्थ, हिंसा, उत्पीड़न विकसित होता है। स्वार्थ, हिंसा, उत्पीड़न का बल सत्ता के समार्थ्य को लील जाता है। सत्ता शक्ति तो है किन्तु शक्ति का प्रयोक्ता स्वार्थी, क्रूर और अंहकारी है तो सत्ता सर्वघाती बन जाती है।
सत्ता अस्तित्व है। अस्तित्व की अभिव्यक्ति पदार्थ की अस्मिता है। अस्मिता सार्वभौम सत्य है उससे इन्कार नहीं किया जा सकता है। अस्मिता पदार्थ का गुण है। हर पदार्थ चाहे वह सचेतन हो या अचेतन अपने अस्तित्व के धूरी पर परिभ्रमण करता है। अस्तित्व केवल अस्तित्व ही नहीं होता, उसमें परिणमन भी होता है। परिणमन की यह प्रक्रिया सनातन है इससे पदार्थ रूपान्तरित होता है। __ सत्ता कभी एक रूप से स्थिर नहीं रह सकती। उसको भी रूपान्तरित होना ही होता है। सत्ता का रूपान्तरण स्वयं भी होता है या फिर किसी संयोग से भी।
सत्ता का उपयोग शासन है अथवा इसको यों कहा जा सकता है दूसरों को शासित करने की शक्ति सत्ता है। शासन में सत्ताधीश ही प्रधान होता है वह अपनी इच्छा से सत्ता का उपयोग करता है। इच्छा में विवेक रहता है, तब तक शासन चलता है लेकिन सत्ता उपलब्ध होने पर इच्छा पर संयम विरल व्यक्तित्व ही कर सकता है। सत्ता इच्छा के वशीभूत रहकर स्वयं और दूसरे दोनों को उत्पीड़ित करती है। सत्ता, राजसत्ता ही नहीं होती। वह
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