________________
१२८
प्रज्ञा की परिक्रमा
को व्यक्त न होने देने का कारण स्वयं की मूर्च्छा ही है। मूर्च्छा में सम्यग् ज्ञान का प्रकाश आवृत रहता है।
सम्यग् ज्ञान आते ही हमारा साध्य स्पष्ट हो जाता है। स्पष्टता से स्थिरता आती है। स्थिरता का ही दूसरा नाम सम्यग् दर्शन है। उसका जीवन व्यवहार में आचरण सम्यक् चरित्र है। महावीर ने जिस सम्यग् - ज्ञान, दर्शन, चारित्र का उल्लेख किया है, जिसे मोक्ष मार्ग कहा गया है वह यही है कि हम अपने आप में जागृत हो जाएं।
युवक के मुखमण्डल पर आलोक की रेखा चमक रही थी ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
OOOO
www.jainelibrary.org