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VI
प्रज्ञा की परिक्रमा उपहृत कर रहा हूँ। यह उपहार मेरे और सबके लिए मंगल मय होगा। गुरुदेव का अनंत अनुग्रह मेरे पर सदा अकारण बरसता रहता है। इसे मैं अपनी थाती मानता हूँ। आशा करता हूँ उनके अनुग्रह का प्रसाद मेरी साधना को सिद्धि तक पहुंचाने में सहयोगी बनेगा। ऐसा भाव मेरे अन्तःकरण में स्फूर्त हो रहा है। “सर्वे सन्तु निरामयाः" ।
तेरा पंथ समवसरण १८ अक्टूबर १९८४
-मुनि किशनलाल
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