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स्वभाव परिवर्तन के प्रयोग .
जीवन-विज्ञान-प्रशिक्षण--शिविर में विभिन्न जिलों से आए अध्यापकों में से जैसलमेर, बीकानेर, जालौर आदि सथानों के कई अध्यापक जो वर्षों से सिगरेट, जर्दा एवं नशीले पदार्थों से ग्रसित थे, संकल्प के प्रयोग से व्यसन मुक्त हो गए। संकल्प प्रयोग क्या है ?
संकल्प के प्रयोग में भावना द्वारा मन और चित्त को भावित किया जाता है। भावित मन पर जमे हए संस्कारों को धो डालता है। जो संस्कार मानस पर अंकित हो भावों तक गहरे चले जाते हैं, उनका भी संकल्प के प्रयोग से निरसन किया जाता है। प्रयोग करते समय आंखें मूंद कर सुखासन में मेरुदण्ड को सीधा रख कर बैठा जाता है। बाएं हाथ की हथेली को नाभि का स्पर्श कर स्थिर रखा जाता है। दाहिना हाथ घुटने के तीन अंगुल ऊपर रहता है। अंगुलियां खुली रहती है। श्वास-प्रश्वास दीर्घ और गहरा करते हैं। प्रत्येक श्वास की टकराहट नाभि को सक्रिय बनाती है। वहां से ऊर्जा का प्रवाह हाथ के अंगठे व अंगलियों की ओर बहने लगता है। ऊर्जा की धारणा की जाती है। ऊर्जा के प्रवाह को तीव्रतम बनाने के लिए मन्त्र-ध्वनि का भी प्रयोग करते हैं। इस अवधारणा के साथ अपने चेहरे का चित्र स्पष्ट दर्पण में प्रतिबिम्बित देखा जाता है। प्रयोग करने वाला अपने चेहरे को देख कर दर्शन-केन्द्र पर (भृकुटी के मध्य) चित्त को एकाग्र करता है और स्पष्ट अनुभव करता है कि हाथ ललाट की ओर आकर स्पर्श करने लगा है। स्पर्श होते ही प्रयोक्ता का चित्त अंतर्जगत् में प्रविष्टि हो जाता है। व्यसन मुक्ति के सुझाव एवं संकल्प का प्रयोग करने वाला सुझाव ग्रहण कर व्यसन मुक्त बन जाता है। संकल्प को परिपक्व बनाने की दृष्टि से संकल्प के इस प्रयोग को तीन बैठकों में दुहराया जाता है। भावना के विविध प्रयोग ___ भावना और अनुप्रेक्षा एकार्थक शब्द हैं। प्रेक्षा के द्वारा जिस सत्य को जाना. उसको अनुप्रेक्षा द्वारा बार-बार अनुभव करना । प्रेक्षा का अनुशासन करने वाली भावना अनुप्रेक्षा है। प्रेक्षा और अनुप्रेक्षा शब्द प्राचीन हैं। युवाचार्य श्री ने प्रेक्षा को ध्यान का सन्दर्भ देकर गरिमापूर्ण स्थान दिलाया है। प्रेक्षा यथार्थ के साक्षात्कार की घटना है। यथार्थ क्षणिक न रह कर स्थायी बने, उसके लिए अनुप्रेक्षा का अभ्यास किया जाता है।
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