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________________ स्वभाव परिवर्तन के प्रयोग ११३ कायोत्सर्ग का यह प्रयोग कुशल निदेशक के निर्देशन में करना उपयुक्त रहता है। प्रयोक्ता के शरीर, मन एवं भावना की स्थितियों का अवलोकन कर उचित सुझाव देकर भावना से चित्त को प्रभावित किया जा सकता है। कायोत्सर्ग में भावना का अभ्यास ज्यों-ज्यों व्यक्ति में तनाव बढ़ता है, सहने की क्षमता कम हो जाती है। छोटी-छोटी घटना से मन उत्तेजित होने लगता है। स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है। आवेश की बार-बार आवृत्ति से व्यक्ति अपने आपको संभाल नहीं पाता। स्वयं दुखी, परिवार में अशान्ति और वातावरण क्लेशपूर्ण बना रहता है। इन सबसे मुक्ति पाने के लिए भावना का अभ्यास आवश्यक है। यह प्रयोग किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन रात्रि-शयन करते समय यह प्रयोग विशेष लाभप्रद होता है। सोते समय श्वास भरते हुए हाथों को कंधे की ओर ले जाकर तनाव दिया जाता है। श्वास छोड़ते हुए हाथों को शरीर के बराबर ले आते हैं। इस प्रकार तीन बार अभ्यास करते हैं। शरीर को पूरी तरह शिथिल छोड़ देते हैं। कहीं पर भी तनाव न रहे, ऐसी भावना से चित्त को भावित करते हैं। शरीर की पकड़ को छोड़ कर आंखें मूंद लेते हैं। श्वास-प्रश्वास पर चित्त को केन्द्रित कर, मन में भावना भरते हैं कि श्वास के साथ शान्ति भीतर जाकर रोएं-रोएं में समा रही है। श्वास छोड़ें तब शान्ति चारों ओर कमरे में फैल रही है। जब तक नींद न आवे, श्वास के साथ इस प्रकार भावना की जाती है। इस प्रयोग के चार परिणाम हैं १. नींद तत्काल एवं गहरी आती है। २. दुःस्वप्न दूर होते हैं। ३. स्वभाव परिवर्तन होने लगता है। ४. स्मृति का विकास होता है। व्यसन मुक्ति के लिए प्रयोग व्यसन प्रारम्भ में आदत नहीं होता। प्रारम्भ में तो स्नायुतंत्र भी उसका प्रतिरोध करता है। पर शनैः शनैः वह उस आदत का अभ्यासी बन जाता है। अभ्यास के साथ नसों से एक विशेष द्रव्य रक्त में मिलता रहता है, उसकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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