SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११ स्वभाव परिवर्तन के प्रयोग मनुष्य सामाजिक प्राणी है। समाज में जीने वाला स्वच्छन्दता से सब कुछ नहीं कर सकता। अकेला व्यक्ति जंगल में स्वेच्छा से कुछ भी कर सकता हैं, किन्तु समाज के साथ जीने वाले को समाज की व्यवस्था और व्यवहार के अनुरूप जीवन-चर्या को ढालना होता है। यदि वह समाज की व्यवस्था और व्यवहार के अनुरूप अपनी जीवन-चर्या को नहीं बनाता है। तो वह सभ्य और श्रेष्ठ नहीं कहला सकता है। एक व्यक्ति समाज की रेखाओं से ऊपर उठ कर आदर्श जीवन जी सकता है, किन्तु ऐसे व्यक्ति दो चार ही होते हैं। दो चार व्यक्तियों से समाज नहीं बन जाता है। समाज में ही रह कर सामान्य जीवन जिया जा सकता है, इसलिए समाज-शास्त्री सामाजिक व्यक्ति के लिए न्यूनतम मर्यादा की व्यवस्था करते हैं। आवेग और उप-आवेग का भी समाज सामान्यीकरण कर लेता है। एक सीमा तक आवेग और उप-आवेग भी समाज का सन्तुलन बनाए रखते हैं। जब वे सीमा को पार कर दूसरे की स्वतंत्रता में बाधा उत्पन्न करते हैं तब व्यक्ति और समाज के लिए चिन्ता का विषय हो जाता है। काम, क्रोध, अहंकार, माया, लोभ आदि आवेग है। हास्य, रति, भय, शोक और दुगुंछा आदि उप-आवेग है। क्रोध आदि आवेग हर व्यक्ति में होते हैं। व्यक्ति साधना द्वारा जब तक वीतराग नहीं बन जाता है, तब तक वह क्रोध आदि आवेगों से पूर्णतया विरत नहीं हो सकता, पर सब वीतराग बन जाएं, यह संभव नहीं हैं, फिर भी अपने आवेगों पर संयम हो-यह समाज और व्यक्ति की अपेक्षा है। उप-आवेग भी समाज व्यवस्था में कुछ सीमा तक सन्तुलन रखने में सहायक बन सकते हैं। किन्तु वे ही रेखा को पार कर समाज को पीड़ित भी कर सकते हैं। आवेग ग्रसित व्यक्ति आवेग और उप-आवेग व्यक्ति और समाज के लिए समस्या बने हुए हैं। अधिकार की प्रबल भावना के आगे कर्त्तव्य का दीपक टिमटिमाने लगता है। अधिकार की प्रबल आकांक्षा का ही प्रतिफल है शास्त्राओं की प्रतिस्पर्धा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003045
Book TitlePragna ki Parikrama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishanlalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy