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काळमां, श्रीदयासिंह गुरु महाराजना शिष्य, अभयसिंह राजवी द्वाराये जेणे प्रतिष्ठा मेळवी छे अने अर्हतशास्त्रना तत्त्वरसिक; वळी साधुसमुदायमां रामविजयना नामथी प्रसिद्ध श्रीरूपचन्द्र गणिए, वि० सं० १८०७ ना मागशरमहिनाना शुक्लपक्षमां त्रीजने दिवसे जोधपुरनगरमां आ काव्यग्रन्थनी रचना करी छे'. __ आथी प्रस्तुत ग्रन्थकारनो सत्ताकाल, विक्रमना १८मा शतकनी अन्त्यनो अने १९मा शतकनी शरूआतनो होवो संभवित छे. ग्रन्थकार तरिके श्रीरूपचंद्रगणिवरना प्रौढ प्रथनशक्ति; नैसर्गिक कवित्वगुण; वगेरेना कारणे कल्पी शकाय छे के प्रस्तुत ग्रन्थकारनी अन्य ग्रन्थकृतिओ होवी जोईए'; आने अंगेना विशिष्ट के निश्चयात्मक प्रमाणो आपणने मळी शकतां नथी, जो के प्रस्तुत काव्यना प्रशस्तिना श्लोको परथी ग्रन्थकार श्रीरूपचन्द्रगणिवरना गच्छ, सत्ताकाल, ग्रन्थरचनानी देश-कालपरिस्थिति विगेरे सामान्यरीतिये जाणी शकाय छे. ते सिवाय विशेष ऐतिहासिक वृत्तान्त हजू अनुपलब्ध ज रहे छे.
प्रस्तुत ग्रन्थकारना कालनी साहित्य-परिस्थितिने अंगे आथी विशेष काईक जाणवा जेवू मळे छे, ते 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' नामना ग्रन्थना संपादक श्रीमोहनलाल दलीचंद देसाईना शब्दोमां आ मुजब छः
___“१९मी सदीमां संस्कृत साहित्यमा बहु ग्रन्थो रचाया नथी, "जे काई रचाया छे तेनी नोंध लईशुं. सं० १८०४मां ओ० उदय"सागरसूरिए स्नात्रपंचाशिका. सं० १८०७मां खरतरगच्छीय
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