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एकंदरे : प्रस्तुत काव्यग्रन्थ, एक सामान्य काव्य नहि, पण महाकाव्य तरिके, विद्वान वर्गनी समक्ष ओलखावी शकाय तेम छे. आने अंगे ग्रन्थ प्रत्यक्ष होवाथी विशेष विवेचननो अत्र अवकाश जोतो नथी. ग्रन्थना अवलोकनथी आ वस्तु समजी शकवी शक्य छे.
'चरमतीर्थपति श्रमण भगवान श्रीमहावीर परमात्माए, अपापानगरीना महसेनवनमां इन्द्रभूति आदि अगियार ब्राह्मणोना जीवादि संशयोनुं निराकरण कर्यु' – ए वस्तु प्रस्तुत काव्यग्रन्थनो प्रतिपाद्य विषय छे. विविध प्रकारना वर्णनोथी; प्रासंगिक अलंकारोथी; अने अनेक रसोना समन्वयथी; ए वस्तुने आ ग्रन्थमां वर्णववामां आवी छे. शास्त्रीय परिभाषामा गणधरवाद तरिके ओळखातो विषय अत्र कमां काव्यकार तरिके विशिष्ट शैली मुजब ग्रन्थकारे आपणी समक्ष मूक्यो छे.
आ वस्तु, विशेषावश्यक भाष्य, बृहत्ट्टीका, आवश्यकटीका वगेरेमां खूब विशद रीतिये स्पष्ट करवामां आवे छे. प्रस्तुत ग्रन्थमां केवळ दिशासूचन तरिके ज गणधरवादनी वस्तु रजू थई छे. काव्यना ग्रन्थ तरिके अन्य काव्यग्रन्थोनी जेम आ मुजब बनवु ए संभाव्य छे.
ग्रन्थकार पाठकश्री रूपचन्द्रगणि:
गौतमीयकाव्यना रचयिता पाठक श्रीरूपचन्द्रगणिवर छे. ग्रन्थकार महापुरुषने अंगेनी विशेष माहिती प्रस्तुत काव्यग्रन्थना प्रशस्तिगत अन्तिम श्लोको परथी आपणने मळी रहे छे. ग्रन्थकारनो सत्ताकाल, गच्छ, ग्रन्थरचनाकाल वगेरे विगतो ट्रंकमां आ मुजब छे:
'विद्याचारवर खरतर - गच्छमां, श्रीमत् श्रीजिनलाभसूरिना शासन
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