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________________ मेसाणेथी प्रामानुग्राम विहार करता करतां अनुक्रमे अमदावादथी पांच माइल पर आवेला नरोडा तीर्थमां तीर्थपति श्रीपार्श्वनाथना दर्शन करी आगळ विहार श्रीअमदावादनुं चातु- करीने शासननी प्रभावना वधे एवा ठाठमाठथी सामैया सहित शहेरमां ास, नागजी भूदर- प्रवेश करी मांडवीनी पोळमां आवेली नागजीभूधरनी पोळमां आवेला जीनी पोळ- उपाश्रयमां पांच ठाणानो चातुर्मास माटे प्रवेश थयो । पूज्यश्रीए सं. १९९८ मांगलिक देशना संभळावी अने संघ तरफथी श्रीफळनी प्रभावना करवामां आवी हती। त्यारपछी प्रथम व्याख्यानमां श्रीस्थानांगसूत्र अने भावनाधिकारमा श्रीपांडवचरित्र नियमित वांचवानी शरुआत कराइ । आ अवसरे ऑगष्टनी चळवळने लीधे शहेरभरमां करफ्युऑर्डर चालु होवाथी सांजना ७ वागतामां तो दरेकने पोतपोताना घरमां भराइ जवू पडतुं होवाथी दिवसना व्याख्याननो लाभ लीधा बाद बपोरना के सांजना कंइ पण लाभ लेवा माटे पोळवाळा सिवाय कोई आवतुं जतुं न हतुं । आ अवसरे कलिकालसर्वज्ञ-भगवान-श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वरजीना नाममांथी श्रीहेम, पूज्य पंन्यासप्रवर श्रीचन्द्रसागरजी गणिवर नाममांथी चन्द्र अने तेओश्रीना परम उपगारी आगमोद्धारक आचार्यदेवेश श्रीआनन्दसागरसूरीश्वरजीना नाममांथी आनन्द, ए प्रमाणेना त्रण शब्दोने सम्मिलिन करीने 'श्रीहेमचन्द्राऽऽनन्दग्रन्थाब्धि' एवा नामवाळी ग्रन्थमाळा शरु करवानो निश्चय करी ते ग्रन्थान्धिना प्रथम ग्रन्थरत्न तरीके ' श्रीहेमचन्द्रकृतिकुसुमावली' नामनो ग्रन्थ बहार पाडवामां आव्यो । मुखपाठ करवानी अनुकूळता माटे ते ग्रन्थमां कलिकालसर्वज्ञ-भगवाननी मूलकृतिओनो संग्रह* छपावेलो छ । श्रीहेमचन्द्राऽऽनन्दग्रन्थान्धिना श्रीहेमचन्द्रकृति-कुसुमावली नामना आ प्रथम ग्रन्थरत्नने प्रकट करवानो लगभग रु० ७००) जेटलो खर्च पूज्य पंन्यासजीना उपदेशथी स्वर्गस्थ शेठ नेमचन्द पोपटलाल वोराना स्मरणार्थे तेओना कुळदीपक पूत्र श्रीजगश्चन्द्रभाईए आपीने आ ग्रन्थमाळानुं मंडाण करावीने तथा अभ्यासियोना अभ्यासमां सवळता करी आपीने महत्पुण्य उपार्जन कर्यु छे। उपर जणावेला प्रथम ग्रन्थरत्ननुं मुद्रणकार्य, सूत्रकृतांगसूत्रतुं मुद्रणकार्य, सि० हे० श. अवचूर्णितुं मुद्रणकार्य, सि. हे.श. शासननुं संशोधन कार्य करवा-कराववानुं अने आनन्दबोधिनी नामनी टीकानी रचनानुं कार्य विगेरे साहित्यनी सेवानो सुन्दर लाभ आ चातुर्मासमां मळ्यो। विशेषमां आ चातुर्मासमां नाना मोटां शुभ कार्यों नीचे मुजब सारा प्रमाणमां थयां हतां१-श्रीनवकार-मंत्रनी आराधनामां बसो उपरांत श्रावक श्राविकाओए लाभ लीधो हतो, अने ज्ञानखातामा रु. ३००) अणसोनी उपज थइ । * १ सिद्धहेमचन्द्र शब्दानुशासनना सात अध्यायना सूत्रो, २ उणादिना सूत्रो, ३ लिंगानुशासन, ४ काव्यानुशासनना आठ अध्यायना सूत्रो, ५ अन्ययोगव्यवच्छेदिका; अने ६ अयोगव्यवच्छेदिका आदि प्रकरणोनो संग्रह छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003041
Book TitleSiddha Hemchandra Shabdanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagar Gani
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1948
Total Pages396
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size21 MB
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