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________________ होवाथी श्रीसिद्धाचलजीनी वर्षगांठने एटले वै. व. ६ ने दिवसे ते बन्ने संसारी बाप दीकरानेश्रीचन्द्रकान्तसागरजीने अने श्रीचन्द्रप्रभसागरजीने पांच दिवसना महोत्सवपूर्वक वडी दीक्षा पण जोटाणामां ज आपवामां आवी हती । मेसाणानी श्रीय० वि० सं० पाठशाळाना विद्यार्थाओनी तर्कसंग्रह, लघुवृत्ति, रघुवंश अने किरात विगेरे ग्रन्थोनी संस्कृत परीक्षा अने जीवविचारादि० प्रकरणनी धार्मिक-परीक्षा पूज्य पंन्यासजीए लिखित पेपर द्वारा लीधी हती। उपर जणाव्या प्रमाणे जोटाणामां एक महिनानी स्थिरता करीने जेठ सुदि ३ ने दिवसे जोटाणाथी विहार करीने कटोसण, रांतेज, कारली, बहुचराजी, तूअर अने कुंआरज थइने पूज्य पंन्यासजी महाराज सपरिवार श्रीशंखेश्वर-तीर्थमां पधार्या । पूज्यश्रीए ज्यारे श्रीशंखेश्वर-तीर्थमा प्रवेश कर्यो त्यारे साथमां बीजा सात मुनिराजो हता, १ हुँ (श्री हीरसागरजी), २ श्री ज्ञानसागरजी, ३ श्री विक्रमसागरजी, श्रीशंखेश्वर-तीर्थमा ४ श्री हिमांशुसागरजी, ५ श्री हेमेन्द्रसागरजी, ६ श्री चन्द्रकान्तसाथयेली रत्नत्रयीनी गरजी, ७ श्री चन्द्रप्रभसागरजी; ए प्रमाणे सात साधु हता. सर्वे आराधना अने उत्पन्न साधुओ श्रीपार्श्वनाथप्रभुनी यात्रा-भावपूजा-करीने कृतार्थ थया । उपर थयेलो अमिलाष जणावेला सात साधुओमांथी केटलाक साधुओए जेठ सुदि १३-१४ __ अने १५ एत्रण दिवसोमां अट्ठमनी अने एकासनादिनी तपस्या करीने रत्नत्रयीनी आराधना करी हती। आ अट्ठमना दिवसोमां पूज्यश्रीने एवो विचार उत्पन्न थयो के---" शासननी खूब प्रभावना थाय एवा हेतुथी जेम अत्यार पहेलां श्रीनवप आराधक समाजादि अनेक संस्थाओनी स्थापना कराववानो पयत्न कर्यो तेम हवे पछी पूर्वाचार्यविरचित-साहित्यर्नु पठनपाठन अने परिशीलन वधे तेवो प्रयत्न करवो जोइए." त्यार पछी उत्पन्न थयेला विचारने सफलीकृत करवानो प्रयत्न पूज्यश्री तरफथी सतत् चालु रहेलो छे, अने उत्तरोत्तर प्रयत्न चालु रहेवाथी तेओश्रीना प्रयत्नने सफळ थयेलो जोवा आपणे जल्दी भाग्यशाली थइशु एवी धारणा छ । पारणाना दिवसे अमदावादथी आवेला श्राद्धगुणसम्पन्न सुश्रावक मोहनलाल छोटालाल आदि वीसेक श्रावक श्राविकाओए पूजा, प्रभावना अने स्वामिवात्सस्यनो लाभ लीधो हतो। उंझा पधारवानी विनंति करवा ऊंझाना संघना माणसो अहीं त्रण दिवसथी आव्या हता, मेसाणा तथा वीसनगरना संघना चातुर्मासनी विनंतिना पत्रो आव्या हता, अने अमदावादनी नागजी भूधरनी पोळना श्रावको पोतानी पोळमां चातुर्मास करवानी विनंति करवा जाते हाजर थया हता; लाभालाभनुं कारण अने अमदावादवाळानो अत्यन्त आग्रह होवाथी तेओनी विनंति स्वीकारवामां आवी अने ऊंझावाळाओनो पण घणो ज आग्रह होवाथी श्रीदेवेन्द्रसागरजी आदिने ऊंझाना चातुर्मासनी आज्ञा आपी। अमदावादना श्रावको तो राजी थइने रवाना थइ गया, अने अमदावाद चातुर्मास माटे विहार करतां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003041
Book TitleSiddha Hemchandra Shabdanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagar Gani
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1948
Total Pages396
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size21 MB
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