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मुद्रणकळाना मोहनीय-युगमां ज्ञानरसिक आत्माओ तन, मन अने धनद्वारा हस्तलिखित ताडपत्रीय ग्रन्थो अगर कागळ पर लखेला ग्रन्थोनी प्रेसकोपिओ करी - करावीने प्रकाशन कर्ये जाय छे अने कराये जाय छे । प्रकाशित थयेला प्रन्थना लाभ लेनारा केटला छे ?, प्रकाशित थयेला ग्रन्थनो उठाव केटलो छे ?, वर्तमानमां ते प्रकाशननी जरुरत हती के नहि ?; विगेरे प्रश्नोना समाधानना ऊंडाणमां उतर्या वगर मुद्रित - साहित्यना प्रकाशनमां जे झडपी वधारो थतो ज जाय छे तेमां एकंदरे लाभनुं पल्लं ऊंचं जाय छे के नीचुं जाय छे ते बाबतमां तो वधु विचार-विनिमय अने निर्णयात्मक विवेकनी जरुरत छे, छतां श्रुतज्ञानना साघनो प्रत्ये भक्ति दर्शावनाओए अमुद्रित - मुद्रित प्रन्धोने छपाववामां जे उत्साह वधार्यो छे तेटलो अगर तो तेथी पण वधु हस्तलिखित ग्रन्थोने साचववामां अने वधारवामां तन-मन अने धननो सव्यय करवानी अनिवार्य आवश्यकता छे ।
साहित्यसंरक्षण माटेना नियमो अने योग्य सूचन अंगुलिनिर्देशरूपे अमे शास्त्रे प्रस्तावनामां करेलुं छे. छतां आ प्रसंगे लेखन पद्धतिनो वेग वधारवा पूर्वकालीन पुण्य पुरुषोनी जीवनचर्या नजर सन्मुख हरहमेश राखी शकाय ते सारु यत्किंचित् सूचन करवुं योग्य गणाशे. श्री उपदेश तरंगिणी, श्री सुकृतसागर, श्री कुमारपाल प्रबन्ध, श्री प्रभावक चरित्र, श्री वस्तुपाल चरित्र, श्री कुमारपाल रास; अने श्री वस्तुपाल - तेजपाल रास विगेरे अनेक ग्रन्थोमां छूटी-छवायी मळी आवती विविध नोंधो उपरथी जणाय छे के - श्रुतज्ञानरसिक पूज्य श्रमण भगवन्तोना उपदेशथी राजा, महाराजा, मन्त्रीश्वरो अने श्रेष्ठिओए जिनागमश्रवण निमित्ते स्वर्गवासी स्वजनना कल्याणार्थे साहित्यवृद्धिना कोई पण शुभ निमित्तने आगळ करीने नव-नवीन साहित्यो लखावीने अथवा अस्तव्यस्त थवाना निमित्तने लीघे वेचवा आवनारा लहिया विगेरे पासेथी खरीद करीने अने करावीने ज्ञानभण्डारोने सुरक्षित राखवापूर्वक सुशोभित करेला छे । साहित्यरसिक - सिद्धराजे, दयावारिनिधि - कुमारपाळे अने शासनरसिक वस्तुपाळ - तेजपाळे ज्ञानभण्डारो कराव्यानी नोंध प्रसंगे मळी आवे छे ।
राजाओ, मन्त्रीश्वरोए अने धनाढ्योए ज्ञानभण्डार कर्या छे, नवीन पुस्तकोनी प्रतिओ सैंकडो-हजारोनी संख्यामां लखावी छे; नमूना तरीके जूओ
उपदेश तरंगिणी - प्रन्थमां जणाव्युं छे के—
" श्री कुमारपालेन सप्तशतलेखकपार्श्वात् ६ लक्ष ३६ सहस्रागमस्य सप्तप्रतयः सौवर्णाश्रीहेमचन्द्राचार्य प्रणीतव्याकरणचरित्रादिप्रन्थानामेकविंशतिः प्रतयो लेखिताः ।
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क्षराः,
आवां आवां अनेकविध लखाणो नजरे पडे छे । आ प्रसंगने ख्यालमा राखी पूर्वपुण्य
१ जुओ - सि. हे. श. शा०नो विभाग-प्रथम, शास्त्र - प्रस्तावना ।
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