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प्रबन्धचिन्तामणि
[ द्वितीय प्रकाश ५५) इसके बाद, मा ल व म ण्ड ल से लौटे हुए दामर नामक सन्धि - विग्रहिकने भोज की सभाका वर्णन करते हुए [ सबको ] बहुत आश्चर्य उत्पन्न किया । और वहाँ ( माल वा में ) जाकर भी म के अलौकिक रूप सौन्दर्यके वर्णनसे भोज को उसे देखनेकी इच्छासे चञ्चल कर दिया । भोज ने अनुरोध किया कि ' या तो भी म को यहाँ ले आओ या मुझे वहाँ ले चलो।' इसी तरह भोज की सभाको देखनेके लिये उत्कण्ठित भीम ने भी वैसा ही अनुरोध किया। किसी एक समय, उपायोंका जाननेवाला वह (दाम र) बहुतसा उपहार लेकर भीम को, जो विप्रका वेश धारण किए हुए था और हाथमें पानदान लिये था, साथ लेकर भोज की सभामें गया। प्रणाम करते हुए उस दामर को [भोज ने भी म के ] ले आनेके वृत्तान्तके बारेमें पूछा। उसने कहा'हमारे स्वामी स्वतन्त्र हैं, जो काम उनको अभिमत नहीं उसे जबर्दस्ती कौन करा सकता है। महाराजको ऐसी दुराशा सर्वथा धारण नहीं करना चाहिये । ' भोज ने भी म की उम्र, वर्ण और आकृति पूँछी । दा मरने सभामें बैठे हुए लोगोंके देखते हुए, पान-दान धारण करनेवालेको लक्ष्य करके कहा-स्वामिन् !
७८. यही आकृति है, यही वर्ण है, यही रूप और यही अवस्था है । इसमें और उस राजामें अन्तर
केवल काच और मणिके समान है।
इस प्रकार उसके बतानेपर, चतुर चक्रवर्ती भो जने सामुद्रिक शास्त्रके आधारपर, उस निश्चल दृष्टिवालेको ही राजा [ यही भीम है ऐसा ] जब समझ लिया तो, उपायन वस्तुयें ( भेंटकी चीजें ) ले आनेके बहानेसे उस सन्धि-विग्रहिक ( दाम र ) ने उसे बहार भेज दिया। जब वे ( भेंटकी ) चीजें आ गई तो दा म र ने उनका गुण वर्णन करके तथा इधर उधरकी बातें करके बहुत-सा काल काट दिया। जब राजाने कहा कि-'वह पान-दानवाला अभीतक क्यों नहीं आया, कितना विलम्ब करता है? ' तो उस (दा मर) ने बताया कि वही तो भी म था। तब राजा उसके पीछे सैन्य दौडाने लगा। इसपर दाम र ने कहा-'बारह बारह योजनके अन्तरपर सवारीके घोड़े खडे हैं, और एक घडीमें योजनभर चली जानेवाली करभियाँ ( साँढनियाँ) रखी हैं । इन सारी सामग्रियोंसे भी म प्रतिक्षण बहुत-सी भूमि ते करता चला जा रहा है। आप उसे कैसे पकडेंगे ?' उसके ऐसा बतानेपर वह देर तक हाथ मलता रहा।
[यहांपर Pb संशक आदर्शमें निम्नलिखित प्रकरण अधिक पाये जाते हैं-] इसके बाद एक दूसरे साल, भीम उस डामर को माल व म ण्ड ल में भेजनेकी इच्छासे वार्ता आदि ( नीति ) सिखा रहा था । डा मरने उठकर वस्त्र झाड़ लिया । तब भी म ने [ कारण ] पूछा । वह बोलाआपका सिखाया हुआ यहीं छोड़ जाता हूँ। क्यों कि वहाँ जाकर तो मुझे स्वयं ही अवसरोचित बोलना पड़ेगा। दूसरेका सिखाया कितना काम आ सकता है। इसके बाद राजाने उसकी अवसरोचित चातुरी जाननेके लिये, प्रच्छन्न भावसे, सोनेके डिब्बेको राखसे भरकर उसके हाथमें, यह सिखाकर भेंट देनेको कहा कि भोज की सभाके सिवा अन्यत्र कहीं भी इसे न खोलना । उसे लेकर वह मा ल वा में गया। भोज की सभामें जाकर उस डिब्बेको, जो अनेक रेशमी वस्त्रोंसे वेष्टित था, राजाको भेंट किया। जब राजाने उसे खोलकर देखा तो भीतर राखका पुञ्ज था। तब राजाने कहा-' अजी, यह कैसी भेंट है ?' हाजिर जवाब डामर ने तत्काल कहा-' महाराज श्री भीम ने एक कोटिहोम कराया है। यह उसीकी रक्षा है, जो तीर्थक समान पवित्र है। प्रीति-सम्बन्धसे उन्होंने आपको भेंट किया है।' उसके ऐसा कहनेपर, राजाने प्रसन्न होकर, अपने हाथसे सब लोगोंको वह थोड़ी थोड़ी दी। उन सबोंने उससे तिलक करके उसका वंदन किया। अन्तःपुरमें भी वह रक्षा भेजी गई। बादमें वह डा म र सम्मानित होकर, प्रति-प्राभृतके (भेंटके बदलेमें दी हुई भेंटके ) साथ लौट आया। भीम को जब यह वृत्तान्त ज्ञात हुआ तो उसने भी उसकी पूजा ( सम्मानना ) की। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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