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३०] प्रबन्धचिन्तामणि
[ प्रथम प्रकाश [३३] हे रत्नाकर, हे गुणपुञ्ज मुख ! चित्तमें इस प्रकार विषाद न करो । क्यों कि जिस प्रकार
विधाता ढोल बजाता है उसी तरह मनुष्यको नाचना पड़ता है । फिर किसी और दयाचित्त सजनने कहा[३४] हे मुञ्ज ! इस प्रकार खेद न करो। क्यों कि भाग्यक्षय होनेपर वह रावण भी नष्ट हो गया,
जिसका गढ़ तो लंका था और जिस गढ़की खाई खुद समुद्र था और उस गढ़का मालिक खुद
रावण दस माथेवाला था। इसी प्रकार३९. हाथी गये, रथ गये, घोड़े गये, पायक और भृत्य भी चले गये । महता ( महामात्य ) रुद्रादित्य
भी स्वर्गमें बैठा आमंत्रण कर रहा है !
बादमें, एक अवसरपर, किसी गृहस्थके घरपर वह भिक्षाके लिये ले जाया गया। उसकी स्त्री उस समय छोटे पाडेको छास पिला रही थी। उसने उसको भिक्षाके लिये खड़ा देख कर गर्वसे कन्धा ऊँचा किया और भीख देनेका इन्कार किया। इसपर मुख बोला
४०. हे भोली मुग्धे ! इन छोटेसे पाडों (भैसके बच्चों ) को देख कर ऐसा गर्व न कर । मुख के तो ___ चौदह सौ और छहत्तर हाथी थे, पर वे भी चले गये । उसने इस प्रकार उत्तर दिया[३५] जिसके घर चार बैल हैं, दो गायें हैं और मीठा बोलने वाली ऐसी [ मैं ] स्त्री हूँ, उस कुटुंबी
(कणबी-किसान ) को अपने घरपर हाथी बाँधनेकी क्या जरूरत है !
एक दूसरी बार जब कि मुञ्ज को इस प्रकार इधर उधर घुमाया जा रहा था, तब, राजा किसी बावडी पर बैठा हुआ उसे देख कर हँसने लगा। इस पर वह बोला
[३६] ऐ धनके अन्धे मूढ़ ! मुझे विपत्तिग्रस्त देखकर हँसता क्या है !-लक्ष्मी कभी कहीं स्थिर
होती देखी है ! तूं क्या इस जलयंत्र-चक्र ( अरहट) की घटियोंको नहीं देखता जो क्रमसे खाली
होती हैं, भरती हैं और फिर खाली होती हैं। इसी तरह पीछे लगकर चिढ़ानेवाले आदमियोंको देखकर उसने कहा[३७ ] मैं उन पर वारी जाता हूँ जो गोदावरी नदीके ऊपर ही अटक गये ( मर गये), जिन्होंने
न इन दुर्जनोंकी ऋद्धि देखी और न इस विह्वल मुज को देखा । फिर अपनी मन्दबुद्धिताका स्मरण करता हुआ इस प्रकार बोला[३८] दासीको कभी प्रेम नहीं होता यह निश्चित जानना चाहिए । देखो, दासीने राजा मुझे श्व र को
घर घर भीख माँगता करवाया। [३९] और जो लोग अपना बडप्पन छोड़कर वेश्या और दासियोंमें राचते हैं वे मुख राजा के समान
बहुत ही अनादर सहन करते हैं। [४०] हे * मर्कट (बंदर ) ! इसलिये तुम अफसोस न करो कि मैं इस स्त्रीके द्वारा खंडित किया
जा रहा हूँ। राम, रावण, और मुञ्ज आदि कैसे कैसे लोग स्त्रियोंसे खंडित नहीं हुए !
* मदारी लोग बंदर और बंदरियाका जब खेल करते हैं तब, बंदरिया रूठकर बंदरका अपमान करती है और बंदरसे पानी भरवाना चक्की चलवाना आदि काम करवाती है। बंदर अपमानित होकर मुँह फेर बैठ जाता है और हाथसे अपने सिरको पीटता हे। इस दृश्यपर किसीकी यह उक्ति है।
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