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________________ २८ ] प्रबन्धचिन्तामणि [ प्रथम प्रकाश उतार कर फिरसे वैसे चढा देते थे । इस प्रकार दो तीन बार कराया। प्रसन्न होकर राजा सीन्ध ल का भी इसी प्रकारका मर्दन करवाने लगा। उसके अंगोंके उतार लेनेपर जब वह निश्चेष्ट हो गया तो आंखें निकलवा लीं। [क्यों कि ] सुसजित अवस्थामें तो उसकी आँख निकालनेमें कौन समर्थ हो सकता था। अतः इस प्रकार मुज ने उसकी आँखें निकलवा लीं और फिर उसे काठके पीजरेमें बंद करा दिया। उसके भोज नामक पुत्रका जन्म हुआ। उस पुत्रने सभी शास्त्रोंका खूब अभ्यास किया। छत्तीस प्रकारके आयुधोंका आकलन कर, बहत्तर कलारूपी समुद्रका पारगामी बना । इस तरह सभी लक्षणोंसे युक्त होकर वह बडा होने लगा। उसके जन्म समय किसी निमित्तज्ञ ज्योतिषोने जन्मकुण्डली बना कर दी [ जिसमें लिखा था कि-] ३४. पचपन वर्ष, सात मास, तीन दिनतक भोज राजा गौड़ देशके साथ दक्षिणापथका भोक्ता होगा । इस श्लोकके अर्थको जब मुअ रा ज ने समझा, तो सोचा कि इसके रहनेपर मेरे लड़केको राज्य नहीं होगा; इस आशंकासे उसने भोज को, वध करनेके लिये अन्त्यजोंके सुपुर्द किया । उन्होंने रातको उसकी मधूर मूर्ति देखकर, अनुकम्पाके साथ कांपते हुए कहा कि-अपने इष्ट देवताको याद करो । इसपर भोज ने निम्नलिखित काव्य, पत्रपर लिखकर, मुअ रा ज को देनेके लिये समर्पण किया। ३५. सत्ययुगके अलंकारके समान वह राजा मान्धा ता चला गया। जिस रावण के शत्रु राम चन्द्र ने महासागरमें सेतु बांधा था वह भी आज कहां है ? और फिर युधिष्ठिर प्रभृति अनेक राजा जो आपके समय तक हो गये हैं, सब चले गये; पर यह पृथ्वी किसीके भी साथ नहीं गई ! पर मैं समझता हूं, तुम्हारे साथ तो जायगी। राजा उसे पढकर मनमें अत्यन्त खिन्न हुआ और बालहत्या करनेवाले अपने आपकी निन्दा करने लगा। [२७ ] हाय, हे भोज ! मरण कालमें कहा हुआ तुम्हारा काव्य हृदय वेध रहा है । दौभाग्यके स्थान समान मुझ पापी, दुष्टको तुम्ही शरण हो । [२८ ] हे गुणागार भोज ! तुझ विना इस राज्यसे मुझे क्या काम है ! अरे कोई चिता सजा दो, ता कि मैं मरकर जाकर भोजसे मिलूं । तब मंत्रियोंने राजाको प्रबोधित करते हुए यह वाक्य कहा[२९] हे स्वामिन् ! यह अति अज्ञान सूचक है जो इस तरह अब आप बोल रहे हैं । जानना वही प्रमाण है जो ऐसी कदर्थनाका कारण न हो। - इस प्रकार वारंवार विलाप करने लगा। ] ३७) बादमें, उनके पाससे अत्यन्त आदरके साथ बुलवाकर उसे युवराजकी पदवी देकर सम्मानित किया। तै लिप देव नामक ति लङ्ग देश के राजाने सेना भेज कर उस ( मुञ्ज ) पर आक्रमण किया । उस समय रु द्रा दित्य नामक महामंत्री रोगग्रस्त था; उसके बारंबार निषेध करनेपर भी मुज ने उसके ऊपर चढाई करना चाहा। [ मंत्रीने कहा[३० ] हे महाराज ! हमारी सीख मान लीजिये, अवहेला न कीजिये । तुम्हारे उधर चले जानेपर इस ( मुझ ) मंत्रीको भीख मांगनी पडेगी। [३१] तुम्हारे बैठे रहनेपर और मेरे लाँघ ( चले ) जानेपर राजाका राज्य रुल जायगा । ऐसा होनेपर बडा ही अकाज होगा और उसकेलिये नुम मालवके धनी जानो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003014
Book TitlePrabandh Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorHajariprasad Tiwari
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size15 MB
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