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प्रकरण ३५-३७ ]
मुअराज प्रबन्ध
६. मुञ्जराज प्रबन्ध । -
- ३५) अब यहांपर प्रसङ्गसे आया हुआ, मा ल वा मण्डल के मण्डनरूप श्री मुख राज का चरित्र वर्णन किया जाता है-प्राचीन कालमें, उस मण्डलका परमार वंशी राजा, जिसका नाम श्री सिंह भट था, राजपाटी निमित्त परिभ्रमण करते हुए, उसने मुंजके बनमें एक सद्यःजात अति रूपवान् बालकको देखा और स्वकीय पुत्रके समान वात्सल्य भाव धारण करके उसे उठा लिया और महलमें लाकर रानीको समर्पण किया। मुंजके वनमें प्राप्त होनेके कारण उसका नाम मुख रक्खा । बादमें उसके एक सीन्ध ल नामक ओरस पुत्र भी पैदा हुआ। [ एक समय ] निःशेष राजगुणोंके समूहसे भूषित ऐसे उस मुख का राज्याभिषेक करनेकी इच्छासे राजा उसके महलमें गया । मुख अपनी स्त्रीको, जो उस समय वहां उपस्थित थी, किसी एक वेत्रासनकी ओटमें बिठाकर, प्रणाम पूर्वक राजाकी सेवा करने लगा । राजाने उस प्रदेशको निर्जन देखकर प्रारंभसे लेकर उसके जन्म आदिका वृत्तान्त कह सुनाया और फिर कहा कि तुम्हारी भक्तिसे सन्तुष्ट होकर अपने ओरस पुत्रको छोड़कर, तुम्हें राज्य दे रहा हूँ पर इस सीन्ध ल नामक भाईके साथ पूरे प्रेमके व्यवहारके साथ वर्तना । इस प्रकारकी आज्ञा देकर राजाने उसका अभिषेक किया। कहीं, अपने जन्मका यह गुप्त वृत्तान्त बाहर न फैल जाय इस आशंकासे उसने अपनी उस स्त्रीको मार डाला । बादमें उसने अपने पराक्रमसे सारे भूतलको आक्रान्त किया और समस्त विद्वज्जनोंके चक्रवर्ती जैसे रु द्रा दित्य नामक पंडितको महामंत्री बनाकर अपने राज्यकी चिन्ताका समस्त भार उसे सौंपा । उस सीन्ध ल नामक भाईको, जिसने अपने उत्कट स्वभावके कारण राजाका कुछ आज्ञाभंग किया था, स्वदेशसे निर्वासित कर, चिरकाल तक निष्कंटक राज्य करता रहा।
३६) वह सीन्ध ल गूजरात देश में आकर, अर्बुद पर्वतकी तलहटीमें का श ह्रद नगरके निकट अपना एक छोटा सा गाँव बसा कर रहने लगा। दीवालीकी रातको शिकार खेलने निकला । चोरोंको वध करनेवाली भूमिके निकट एक सूअरको चरते देख, उसने सूलीपरसे गिरे हुए एक चोरके शवको न देख कर, उसे घुटनोंसे दबा कर, जब वह अपना बाण चलाने लगा, तो उस शबने [ मारनेका ] संकेत किया । उसे हाथ लगा कर मना करते हुए, उस बाणसे सूअरको मार गिराया। बादमें जब सूअरको अपनी ओर खींचने लगा तो वह शब जोरोंका अट्टहास करके उठ खड़ा हुआ । इस पर सीन्धुल ने कहा-तुम्हारे किये हुए संकेतके समय सूअरपर प्रहार करना उचित था, या समझ बूझकर जो मैंने प्रहार किया वह ठीक था ! उसके इस वाक्यके पूरा होनेपर, वह छिद्रान्वेषी प्रेत, उसके ऐसे निःसीम साहससे सन्तुष्ट होकर बोला कि 'वरदान माँगो ।' ऐसा कहनेपर-' मेरे बाण जमीनपर न गिरें' ऐसा माँगा; उस शबने कहा · और भी कुछ माँगो।' इसपर उसने कहा कि-'मेरी भुजाओंमें सारी लक्ष्मी स्वाधीन हो।' उसके साहससे चकित होकर उस प्रेतने कहा कि-तुम मा ल व म ण्ड ल में जाओ। वहाँ मुञ्ज राजाका विनाश निकट है, इसलिये तुम वहीं जाकर रहो। तुम्हारे ही वंशमें वहाँ राज्य रहेगा । इस प्रकार उसके कथनानुसार वह वहाँ गया और मुज राजासे कोई एक संपत् शाली प्रदेश प्राप्त कर, कुछ काल बाद, फिर उसी प्रकार उद्धत भावसे वर्तने लगा। एक बार एक तेलीसे कुश माँगी । उसने नहीं दी । इसपर कुपित होकर, बलात्कार पूर्वक छीन कर, और उसे मरोड कर उसके गलेमें डाल दी। तेलीने राजाके आगे पुकार की । राजाने समझा बुझाकर उसे सीधी करवाई । उसके ऐसे उत्कट बलसे राजा मुख भयभीत हो गया। इसके बाद, मालिश करनेमें बड़े कुशल ऐसे कुछ कलावन्त विदेशसे वहाँपर आये । वे राजासे मिले । राजा उनसे अपने शरीरमें मालिश कराने लगा। वे भी अपनी कलासे हाथ पैर आदि अंग
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