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प्रास्ताविक वक्तव्य हिन्दी भाषान्तरके प्रकट होनेके बाद, ( जो अब शीघ्र ही प्रेसमें जानेवाला है ) प्रकट होगा- अर्थात् हमारी संकल्पित योजनाके अनुसार, वह इस प्रबन्धचिन्तामणका ५ वाँ भाग होगा ।
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६. प्रबन्धचिन्तामणि वर्णित ऐतिहासिक तथ्योंके विषयमें कुछ स्वाभिप्राय ज्ञापन ।
___ इस ग्रन्थके पढ़नेवाले पाठकोंको यह बात लक्ष्यमें रखनी चाहिये कि - यद्यपि ग्रन्थ प्रधानतया ऐतिहासिक प्रबन्धोंका संग्रहात्मक है, तथापि इसके सब-के-सब प्रबन्ध ऐतिहासिक नहीं हैं । खास करके अन्तिम प्रकाशमें जो पुण्यसार, कर्मसार, वासना, कृपाणिका इत्यादि शीर्षक ५-७ प्रबन्ध हैं वे पौराणिक ढंगके कथात्मक रूप हैं। उनमें ऐतिहासिकता खोज निकालना निरर्थक है। बाकीके अन्य बहुतसे-प्रायः सब ही-ऐतिहासिक माने जा सकते हैं, पर इनमें से भी कुछ प्रबन्धों में वर्णित व्यक्तियोंके विषयमें, अभी तक इतिहासविदोंमें थोड़ा बहुत मतभेद अवश्य है। दृष्टान्तके तौरपर, प्रथम प्रकाशमें प्रारंभ-ही-में दिये गये विक्रमार्क राजाके व्यक्तित्वके विषयमें विद्वानोंमें अभी तक कोई एक निर्णयात्मक विचार स्थिर नहीं हो पाया । वह राजा कौन था और कब हो गया इसके विषयमें अभी तक अनेक तर्क-वितर्क किये जा रहे हैं । नामके अतिरिक्त प्रबन्ध कथित और सब बातें तो एक कहानीकी अपेक्षा अन्य कोई अधिक महत्त्व नहीं रखतीं ।
___ यही बात सातवाहनवाले प्रबन्धके विषयमें कही जा सकती है। सातवाहन राजाका नाम यद्यपि शिलालेखों वगैरहमें उपलब्ध होता है, पर इस नामके कई राजा हो जानेसे और प्रबन्धमें वर्णित घटनाका कोई ऐतिहासिकत्व प्रतीत न होनेसे उसके विषयमें भी नामके अतिरिक्त प्रबन्धकथित समूचा वर्णन कल्पनात्मक ही मानना चाहिए।
सातवाहनके बाद भूयराजका जो प्रबन्ध है, उसके अस्तित्वके विषयका अभीतक अन्य कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हुआ है, पर उसके ऐतिहासिक पुरुष होनेका संभव माना जा सकता है।
इस तरह इन कुछ दो चार नामोंकी व्यक्तियोंको छोड़ कर, बाकी जितने भी नाम इस ग्रन्थमें आये हुए हैं वे सब प्रायः ऐतिहासिक पुरुष हैं । हाँ उनमेंसे कुछ कुछ व्यक्तियोंका संबन्ध, परस्पर एक दूसरेके साथ, इस तरह जोड दिया गया है जो भ्रमात्मक है । उदाहरणके तौरपर, भोज-भीमके वर्णनवाले दूसरे प्रकाशमें, धाराके परमार राजा भोजदेवके साथ खास करके महाकवि बाण, मयूर, मानतुङ्ग और माघ आदिका जो परस्पर सम्बन्ध
और समकालीनत्व वर्णन किया गया है वह सर्वथा भ्रान्त और निराधार है । ग्रन्थकारके पूर्ववर्ती और प्रसिद्ध विद्वान् प्रभाचन्द्र सूरिने, अपने प्रभावकचरित्रमें, इन व्यक्तियोंका वर्णन और ही राजाओंके समयमें दिया है और वह कुछ प्रमाणभूत भी सिद्ध होता है । तब फिर न मालूम मेरुतुङ्ग सूरिने किस आधार पर, ऐसा भ्रान्तिपूर्ण यह वर्णन अपने इस महत्त्वके ग्रन्थमें ग्रथित कर डाला है, सो समझमें नहीं आता । भोजप्रबन्धकी ये बहुतसी बातें कल्पनाप्रसूत और लोककथायें जैसी प्रतीत होती हैं । ग्रन्थकारने ये बातें किसी पुरातन प्रबन्ध आदिके आधार पर लिखी हैं या किसीके मुखसे सुन कर लिखीं हैं इसके जाननेका कोई साधन अभीतक ज्ञात नहीं हुआ।
सिद्धराज और कुमारपालके समयके जितने वर्णन इसमें प्रथित हैं वे प्रायः सब-के-सब ऐतिहासिक और आधारभूत हैं । उनके घटनाक्रममें कुछ आगे-पीछे पनका संभव हो सकता है पर उनमेंका कोई वर्णन सर्वथा निर्मूल हो ऐसा नहीं माना जा सकता।
मेरुतुङ्ग सूरिके इस ग्रन्थमें, ऐतिहासिक दृष्टिसे, जो सबसे अधिक विशेष महत्त्वका उल्लेख पाया गया है
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