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१४६ प्रबन्धचिन्तामणि
[पंचम प्रकाश हाथ डाल कर लग्न मिटाने लगा। तब इसके अनन्तर वह सिंहका रूप त्याग करके सूर्यरूपमें प्रत्यक्ष हुआ और कहने लगा ' वर माँगो'। तब उसने माँगा कि- 'मुझे समस्त नक्षत्र ग्रह-मंडलको [प्रत्यक्ष ] दिखा दो'। यह सुन सूर्य उसे अपने विमानपर चढ़ा कर ले गया और [ सारा ग्रहचार बता कर ] एक वर्ष बाद वहीं ले आ कर छोड़ गया । इस तरह वह ग्रहोंके वक्र, अतिचार, उदय, अस्त आदिकी प्रत्यक्ष परीक्षा करके पुनः अपने स्थानमें आया। मिहिर (सूर्य) का प्रसाद प्राप्त होनेसे व रा ह मि हि र इस नामसे प्रसिद्ध हो कर वह श्री नन्द नामक नृपतिका परम मान्य हुआ और उसने 'वारा ही सं हि ता' नामक एक नया ज्योतिषशास्त्र बनाया ।
२१९) एक बार, अपने पुत्र जन्मके अवसरपर, उसने अपने घरमें घटिका रख कर उससे जन्मकालका शुद्ध लग्न ले कर जातक ग्रंथके प्रमाणसे ज्योतिष (जन्मपत्र) बनाया। स्वयं प्रत्यक्ष किये हुए ग्रहचक्रके ज्ञानके बलपर उस पुत्रकी आयु एक सौ वर्षकी निर्णीत की। उस महोत्सवमें, श्री भद्र बा हु नामक एक जैनाचार्य- जो उसके छोटे भाई थे-को छोड़ कर, राजासे ले कर रंक तक कोई ऐसा नहीं रहा था जो कुछ उपहार हाथमें ले कर उसके वहां नहीं गया हो । तब उस नैमित्तिकने जिनभक्त श क टा ल मंत्री के आगे, उन सूरिके न आनेके बारेमें उलाहनेके तौरपर कहा । तब उस मंत्रीने, उन महात्माको, जो संपूर्ण शास्त्रके ज्ञाता थे और त्रिकालके भावोंको हथेलीपर रखे हुए आँवलेके फलकी तरह जानते थे, यह बात कह सुनाई । तो उन्होंने कहा कि- ' आजसे बीसवें दिन उस लड़केकी, बिल्लोके निमित्तसे, मृत्यु होगी इसलिये यह समझ कर हम नहीं आये ' । उनकी यह उपदेश-वाणी वराह मिहिर से कही गई । तब उसने अपने कुटुंबको, उस बालककी भावी विपदसे आवश्यक रक्षा करनेके लिये कहा और बिल्लीसे बचा रखनेके लिये सौ सौ उपाय करने लगा। फिर भी निर्णीत दिनकी रातको उस बालकके सिरपर अर्गला ( दरवाजेको बंद करनेके लिये लकडी या लोहेकी बनी हुई एक पट्टी) गिर जानेसे अचानक वह मर गया । फिर उस शोकशंकुसे उसका उद्धार करनेकी इच्छासे श्री भद्र बा हु उसके घर आये। वहाँ उन्होंने देखा कि उसके घरके आँगनमें ज्योतिषकी सभी पुस्तकें इकट्ठी करके जलानेके लिये रखी पड़ी हैं। तब उन्होंने पूछा कि ' यह क्या बात है ?' तो उस साँवत्सर (ज्योतिषी) ने बड़े दुःखके साथ, उन जैनमुनिको उपालंभ देते हुए कहा- 'ये पुस्तकें बड़े भारी मोहान्धकारको उत्पन्न करनेवाली हैं इसलिये अब निश्चय ही इन्हें जला दूंगा; क्यों कि इन्होंने मुझे धोकेमें डाला है। उसके ऐसा कहनेपर अपने शास्त्रज्ञानके बलसे बालकका जन्मलग्न ठीक तरह निकाल कर उन्होंने सूक्ष्म दृष्टिसे उसका ग्रह-बल बताया तो वह बीस ही दिनका आया। इस प्रकार उसकी शास्त्रविरक्ति जब दूर की गई तो वह ज्योतिषी बोला कि - आपने जो बिडालसे मृत्यु बताई वह तो ठीक नहीं साबीत हुई '। तब उन्होंने उस अर्गलाको वहाँ मँगवाई, जिसके गिरनेसे मृत्यु हुई थी, तो उसमें बिड़ालकी आकृति खुदी हुई पाई गई।' क्या भवितव्यतामें भी कभी कुछ परिवर्तन हो सकता है ? ' ऐसे उस महर्षिने कहते हुए कहा कि
२६१. किस बातके लिये रोया जाय ? यह शरीर क्या चीज़ है ! ये परमाणु तो अविनाशी हैं । यदि
___ संस्थान-विशेषके लिये ही शोक करना है, तब तो कभी भी प्रसन्न ही नहीं होना चाहिये ।। २६२. यह सब भाव ( अस्तित्व ) अभावोत्पन्न है और मायाके विभवसे संभावित है । इसका अंत भी
अभाव ही में संस्थित है । इस बातके ज्ञानसे सज्जनोंको भ्रम नहीं पैदा होता । -इस प्रकारकी युक्तिपूर्वक उक्तिसे उसे समझा कर वे महर्षि अपने स्थानपर आये । इस तरह समझाये जानेपर भी वह, मिथ्यात्व रूप धत्तूरके प्रभावसे सच्चे सुवर्णमें भ्रान्तिवाला हो कर, उनके प्रति द्वेषभाव धारण कर रहा । अतः [ ईर्ष्यावश ] अभिचार कर्मसे, उनके भक्तों और उपासकों से किसीको कष्ट पहुंचाने लगा और
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