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________________ प्रकरण १८९-१९१ ] कुमारपालादि प्रबन्ध [ १२७ १९०) इसके बाद, एक दूसरे अवसर पर, श्री सो मे श्व र कवि ने यह काव्य कहा - २२३. हे सचिव ! आपका [बनाया हुआ] तड़ाग जिसमें चक्रवाक पक्षी चल रहे हैं और आति ( एक प्रकारके पक्षी जिसको देशभाषामें आड कहते हैं ) क्रीडा कर रहे हैं, वह, अत्यन्त प्रशंसित ऐसे हंसोंसे, कमल को छू कर हिलोलें लेती हुई तरंगोंसे, अन्तर्गंभीर जलोंसे, और चंचल बकोंके ग्रास होने के भयसे छिपे हुए मत्स्योंसे, तथा किनारे पर उगे हुए वृक्षोंके नीचे सुखपूर्वक शयन किये हुई स्त्रियोंके गाये हुए गीतोंसे शोभित हो रहा है। ___इसमें प्रयुक्त ' आति' शब्दके पारितोषिकमें' मंत्रीने कविको सोलह हजार द्रम्मका दान दिया । कभी फिर ( किसी समय ) मंत्री चिन्तातुर हो कर नीचे जमीनकी ओर देख रहे थे तब सो मेश्वर ने यह यह समयोचित पद्य पढ़ा२२४. वाग्देवीके मुखकमलके तिलकसमान हे वस्तु पाल ! ' तुम्ही एक मात्र भुवनके उपकारक हो'-ऐसी सजनोंकी बात सुन कर जो लज्जासे सिर झुका कर तुम पृथ्वीतलकी ओर देख रहे हो, सो मैं मानता हूं कि, अब स्वयं पातालसे बलिका उद्धार करने के लिये कोई मार्ग ढूंढ रहे हो। मंत्रीने इस काव्यके पारितोषिकमें आठ हजार दिया। इसी तरह पंडितोंके बार बार इस श्लोकके ये तीन चरण पढ़ने पर कि २२५. · कर्णने दानमें चर्म दिया, शिबिने मांस दिया, जीमूतवाहनने जीव और दधीचि ने अस्थि दिये'इस पर पण्डित ज य दे व ने समस्या पदकी नाई [ चौथा पद ] कहा-'और वस्तु पालने वसु (धन) दिया।' ऐसा कहने पर उसने ४ सहस्र पाया। इसी प्रकार सूरि ( अपने धर्मगुरु ) के शिष्योंकी प्रतिलाभनाके अवसर पर, किसी दरिद्र ब्राह्मणने याचना की, तो उसके नियुक्त आदमियोंसे उसे एक वस्त्र मिला; जिसे पा कर उसने मंत्रीके आगे यह समयोचित पद्य पढा२२६. हे देव ! कहीं रूई, कहीं सूत, और कहीं कपासके बीज लगी हुई यह हमारी पटी (पिछोडी) तुम्हारे शत्रुओंकी स्त्रियोंकी कुटीकी तरह दिखाई दे रही है। इसके पारितोषिकमें मंत्रीने १५ सौ दिया । इसी तरह बाल चंद्र नामक पंडितने मंत्रीके प्रति यों कहा२२७. हे मंत्रीश्वर ! गौरी तुम्हारे ऊपर अनुरागवती है, वृष तुम्हारा आदर करता है, भूतिसे तुम युक्त हो और गुणवान् शुभगण तुम्हारे पास हैं । सो निश्चय ही ईश्वर ( शिव ) की सभी कलाओंसे युक्त ऐसे तुम्हें अब बालचंद्रको ऊंचा स्थान देना उचित है। तुमसे बढ़ कर समर्थ और कौन है। [ गौरी, वृष, भूति, गण, और बालचंद्र-इन शब्दोंके प्रसिद्ध अर्थके अतिरिक्त, गौरी स्त्री, धर्म, वैभव, सेना और बोलने वाला कवि ये क्रमशः श्लेषके अर्थ हैं । ] कविके ऐसा कहने पर मंत्रीने उसके आचार्य पदकी स्थापनाके लिये चार हजार द्रम्म खर्च किया । मंत्रीका मुसलमान सुलतानके साथ मैत्री संबन्ध बांधना। १९१) किसी समय म्लेच्छराज (मुसलमान ) सुलतानके गुरु मालिम (मौलवी) को मख (मक्का) तीर्थकी यात्राके लिये वहाँ आया हुआ जान कर उसे पकड़नेके इच्छुक श्री ल व ण प्रसाद और वीर ध व ल ने मंत्री तेजपाल से सलाह पूछी । उसने इस प्रकार बताया १ यह आति शब्द प्रायः संस्कृत साहित्यमें कहीं नहीं प्रयुक्त हुआ है इस लिये इसका अभिनव प्रयोग किया गया देख कर मंत्रीने यह दान दिया मालूम देता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003014
Book TitlePrabandh Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorHajariprasad Tiwari
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size15 MB
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