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________________ ११२ ] प्रबन्धचिन्तामणि सेवड ( श्वेताम्बर साधु ) आ रहा है । इस प्रकारका अत्यधिक निंदास्पद कथन सुन कर, अन्तःकुटिल पर बाहरसे सरल दिखाई देनेवाले तिरस्कार पूर्ण वचनसे प्रभुने कहा कि - ' अरे पंडित ! तुमने क्या यह भी नहीं पढा कि विशेषणका प्रयोग पहले किया जाना चाहिए । अब से 'सेवड हेमड' ऐसा कहना ( हेमड - सेवड ) नहीं । सेवकोंने [ यह सुन कर ] उसे भालेकी नोंकसे घोदा कर छोड़ दिया राजा कुमार पाल के राज्यमें शस्त्रवध नहीं किया जाता था, इसलिये उसकी वृत्तिका छेद कर दिया गया। इसके बाद, कण-कणकी भीख माँग कर अपना प्राण धारण करता हुआ वह प्रभुकी पौषधशाला के सामने आ कर बैठा । उस समय वहाँ पर अनादि भूपति नामक मठके तपस्वियों द्वारा अधीयमान योग शास्त्र का श्रवण करके, उसने फिर सच्चे हृदयसे यह काव्य कहा कि - । २०१. जिन अकारण दारुण मनुष्यों के मुँहसे आतंकका कारण ऐसा गाली-रूपी गरल (विष ) निकला है उन जटा धारण करने वाले फटाधरों ( सर्पों ) के मंडलका, यह योग शास्त्र का वचनामृत अब उद्धार कर रहा है । ऐसे अमृत के समान मीठे उसके वचनसे, प्रभुका वह उपताप शान्त हुआ और उसकी वृत्ति फिर दुगुनी कर उसे प्रसादित किया । [ चतुथ प्रकाश इस प्रकार यह वामराशि प्रबंध समाप्त हुआ । * Jain Education International सोरठके दो चारणोंकी कविताविषयक स्पर्द्धा । १६३) फिर कभी, एक बार, सुराष्ट्र मंडलके रहने वाले दो चारण, परस्पर दूहा - विद्यामें (दोहा छन्दकी रचना करने में ) स्पर्द्धा करते हुए यह प्रतिज्ञा करके अणहिल्लपुर में पहुँचे जिसके दोहाकी सराहना करेंगे, उसे दूसरा हर्जाना देगा । ' फिर उनमें से एकने यह दोहा कहा - कि-' हेम चंद्राचार्य प्रभुकी सभा में आ कर I २०२. हे हे मसूरि ! मैं तुम्हारे मुँह पर वारी जाऊं | लक्ष्मी और वाणी (सरस्वती) का जो सापल्य (वैर) भाव था वह, इसने नष्ट कर दिया । क्यों कि हेम चंद्र सूरि की सभा में तो जो पण्डित है ही लक्ष्मीवान् है । ऐसा कह कर, उसके चुप हो जाने पर, फिर श्री कुमार विहार में आरतीके अवसर पर राजा जब प्रणाम कर रहा था और प्रभुने उसकी पीठ पर हाथ रखा हुआ था, उसी समय वहाँ चारणने यह कहा - प्रवेश करके दूसरे २०३. हे हेम सूरि ! मैं तुम्हारे इस हाथ पर वारी जाऊं - जिसमें अद्भुत ऋद्धि रही हुई है । नीचे मे हुए जिस मुख ऊपर यह पडता है उसके ऊपर सिद्धि आ बैठती है । इस प्रकार के अनुच्छिष्ट ( मौलिक ) भाववाले उसके बचनसे मनमें चमत्कृत हो कर राजा इसी दोहेको बार बार बुलाने लगा । तीन बार बोलने बाद उसने कहा कि - क्या एक एक बार बोलने पर एक एक लाख दोगे ? - इस पर राजाने उसे ३ लाख दिलाया । इस प्रकार यह दो चारणोंका प्रबंध समाप्त हुआ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003014
Book TitlePrabandh Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorHajariprasad Tiwari
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size15 MB
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