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________________ ९२] प्रबन्धचिन्तामणि [ तृतीय प्रकाश [११५] धारा-भंगके प्रसंगको देख कर, जिसके समीप आनेकी ही आशंकासे, प्राघूर्णकके बहाने जिसको महो द य राजने दण्ड दिया । [११६ ] जिस शत्रुने, अमृतकी भाँति, इसकी पृथ्वीके लेनेकी इच्छा की, उसीको तरवारसे उल्लसित इसके बाहुने राह बना दिया ( अर्थात् राहुके समान उसे सिरकटा बना दिया )। [ ११७ ] लोगोंने तो इसको कुमार ( कार्तिकेय ) की ही तरह शक्तिमान् अपना स्वामी माना था, लेकिन यह तो ताम्रचूडध्वज * था और वह केकिध्वज * था ( यही इनमें अंतर था)। [ ११८ ] ऐसा कोई राजा नहीं था, जिसको विश्वके इस एकमात्र वीरने जीता न हो; और ऐसी कोई दिशा न थी जो इसके यशसे शोभित न हुई हो । [ ११९ ] गणेशकी तरह जिस अग्रपुष्कर और वृषस्थितिको, मोदककी तरह, गौड राजा आज्यसार और करस्थ हो गया। [१२० ] श्मशानमें बर्बर नामक राक्षसेन्द्रको बाँध करके राजाओंकी श्रेणीमें जो राजचंद्र सिद्धराज हो गया । [१२१ ] जिसने, लड़ाईसे ऊठी हुई धूलसे पहले जिस आकाशको मलिन कर दिया था, उसने पीछेसे उसी आकाशको अपनी कीर्तिलहरीसे धो कर उज्ज्वल कर दिया । [१२२ ] उस पृथ्वी मंडलके सूर्यके लोकान्तर होने पर चन्द्रसमान श्रीमान् राजा कु मार पाल ने प्रजाका रञ्जन किया। * सिद्धराजके ध्वजमें ताम्रचूड याने कुक्कुटका चिह्न था इस लिए वह ताम्रचूडध्वज कहलाता था। कुमार (कार्तिकेय) के ध्वजमें केकी अर्थात् मयूरका चिह्न था । मयूरकी अपेक्षा कुक्कुट आधिक बलवान् होता है, इस लिये कुमारसे भी आधिक सिद्धराजका शक्तिमान् होना इस पद्यमें ध्वनित किया गया है। १. गणेशके पक्षमें-आगे है हाथीकी सूंड जिसके; राजाके पक्षमें आगे.हे बाण जिसके। २ गणेशके पक्षमें-मूषकपर है स्थिति जिसकी; राजाके पक्षमें धर्मपर है स्थिति जिसकी। ३ मोदकके अर्थमें आज्यघृतसारवाला, राजाके अर्थमें =युद्धसार वाला। ४ मोदकके अर्थमें कर=Dहाथमें रहा हुआ; राजाके अर्थमें कर दण्ड देनेवाला । +गोडबंग देशका राजा सिद्धराजको कर देने वाला बना यह अर्थ इस पद्यमें ध्वनित किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003014
Book TitlePrabandh Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorHajariprasad Tiwari
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size15 MB
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