SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण ११२-११६ ] सिंहपुरके ब्राह्मणोंका कर माफ करना । सिंहपुरके ब्राह्मणोंका कर माफ करना । ११४) एक दूसरी बार, राजाने वाला क देश की दुर्गभूमि (पहाड़ी जमीन ) में सिंह पुर नामका प्रदेश ब्राह्मणोंको रहनेके लिये दे दिया और उसके अधीन १०६ ग्राम दान कर दिये । पर वहां पर सिंहका डर देख कर ब्राह्मणोंने सिद्ध रा ज से प्रार्थना की कि, उन्हें कहीं देशके भीतर निवास दिया जाय । इस परसे राजाने उनको सा भ्र म ती के तीर परका आ सां बिली ग्राम दे दिया, और सिंह पुरसे धान्य लानेमें जो आते जाते कर लगता था उसे माफ कर दिया गया। वाराहीके पटेलोंको बचाका बिरुद देना। ११५) बादमें, राजा सिद्ध राज ने किसी समय, मा ल व दे श की यात्राके लिये प्रयाण किया । रास्तेमें वारा ही ग्राम के पास जब वह आया तो उस गाँवके पटेलों ( मुखियों ) को बुला कर, उनकी चतुरताकी परीक्षाके लिये, अपनी एक प्रधान पालकी, उनको अपने पास थातीके रूपमें रखनेके लिये दी। राजाके आगे प्रयाण कर जाने पर उन सभीने मिल कर, उसके एक एक हिस्सेको अलग अलग कर, यथोचित रूपसे सबने अपने अपने घर पर संभालके रखा। यात्रासे लौटते समय राजाने अपनी रखी हुई उस थातीको जब उनसे माँगी, तो उन्होंने अलग अलग किये हुए उसके वे सब टुकडे लाके दिये । यह देख कर राजाने आश्चर्यसे पूछा कि- ' यह क्या बात है ?' तो उन्होंने विज्ञापना की कि- ' महाराज ! [हममेंसे ] कोई एक आदमी तो इसकी रक्षा करनेमें समर्थ नहीं हो सकता। कभी चौर और अग्नि आदिका उपद्रव हो जाय तो फिर स्वामीके सामने कौन जवाबदेह हो- यही सोच कर हम लोगोंने यह ऐसा किया है।' तब राजा मनमें खूब आश्चर्यचकित हुआ और उनको 'ब्रूच *' ऐसा बिरुद उसने दिया । इस प्रकार यह वाराहीय ब्रूच प्रबंध समाप्त हुआ। उझाके ग्रामीणोंसे वार्तालाप। ११६) इसके बाद, एक बार राजा श्री जय सिंह देव, मा ल व विजय करके लौट रहे थे तब रास्तेमें पड़ने वाले उञ्झा ग्राम में खीमे डाले गये । वहांके ग्रामीणोंने, जिनको राजा मामा कहा करता था, दूधसे भरे हुए हंडों आदिके उचित सत्कारसे राजाको सन्तुष्ट किया । उसी रातको, राजा गुप्त वेष करके उनके दुखसुख जाननेकी इच्छासे, किसी ग्रामीणके घर पर चला गया । वह (ग्रामीण) गाय दुहने आदिके कामोंमें व्यस्त होता हुआ भी, उसने पूछा कि- 'तुम कौन हो?' [ इत्यादि । इसके उत्तरमें उसने ] कहा कि- मैं श्री सोमेश्वरका कार्पटिक (यात्री) हूं; म हा राष्ट्र देश का रहने वाला हूं।' उसने फिर उससे म हा राष्ट्र देश और उसके राजाके गुण-दोष आदि पूछे । उसने वहांके राजाके ९६ गुणोंकी प्रशंसा करते हुए, उस प्रामीणसे गूर्जर देश के राजाके गुण-दोष पूछे । इस पर वह श्री सिद्ध राज के प्रजा-पालन-दक्षत्व और सेवकों पर अनुपम प्रेम इत्यादि गुणोंका वर्णन करने लगा। तब बीचमें उसने राजाका कोई कृत्रिम दोष बताना चाहा, तो वह आँसू गिराता हुआ बोला कि-' हम लोगोंके मंद भाग्यसे राजाको कोई पुत्र नहीं है और यही उसमें एक दोष है'। इस प्रकार निष्कपट भावसे उसने उससे सब कह कर उसे संतुष्ट किया। फिर प्रभात कालमें सब लोक मिल कर राजाके * यह 'ब्रूच' कोई देश्य शब्द है। हिंदीमें इसके जैसा बूचा शब्द है जिसका अर्थ ' कानकटा हुआ' ऐसा होता है। इन पटेलोने राजाकी पालकीके अंग-प्रत्यंग काट डाले थे इस लिए इनको 'बूचा' कहा गया प्रतीत होता है। गुजरातीमें बूचाका अर्थ भोला-मुग्ध ऐसा भी होता है। इससे राजाने उनके इस भोलेपनको देख कर उन्हें 'बुचा' ऐसा सम्बोधन किया हो। Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003014
Book TitlePrabandh Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorHajariprasad Tiwari
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy