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________________ जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा नाम-निश्चितता तीर्थंकरों के लिए यह कोई नियम नहीं कि इनके अमुक अमुक नाम ही होना चाहिये, ये किसी भी नाम से हो सकते हैं। हाँ ये महापुरुष हैं इसलिये इनके नाम गुण निष्पन्न तो होते हैं। इधर देवलोक में जहाँ भी प्रतिमायें हैं वे सभी चार नामों की ही हैं, जहाँ १०८ प्रतिमायें हैं वे भी सिर्फ इन चार नामों की ही हैं। इससे भी यही सिद्ध होता है कि ये प्रतिमायें तीर्थंकर की नहीं है, क्योंकि तीर्थंकर तो २४ होते हैं और सभी भिन्न-भिन्न नाम के, फिर यहाँ चार ही नाम की मूर्तियें क्यों ? और ये नाम भी शाश्वत क्यों? इसके उत्तर में ज्ञानसुन्दरजी पृ० ४७ में लिखते हैं कि - "ये चार नाम शाश्वत हैं, हर एक चौबीसी में इन चार नाम के तीर्थंकर होते ही हैं इसीलिए देवलोक में इन चार नाम की ही प्रतिमायें हैं ।" इनकी उक्त तर्क भी मनगढ़त ही प्रतीत होती है, क्योंकि इसके लिए आपने कोई प्रमाण नहीं दिया न आज तक कहीं किसी आगम में ऐसा प्रमाण देखने में ही आया है, अतएव प्रमाण शून्य बात का मूल्य ही क्या ? दूसरा जब हम समवायांग सूत्र में भविष्यत् उत्सर्पिणी काल में होने वाले तीर्थंकर की पूरी नामावली देखते हैं तब उसमें तो इन ( ऋषभ वर्द्धमान, चन्द्रानन, वारिसेन) चार नामों में से एक भी नाम नहीं है फिर इनकी तर्क के मिथ्या होने में क्या न्यूनता है ? मैं सुन्दर मित्र से पूछता हूँ कि यदि किसी चौबीसी में २० - २२ या २३ तीर्थंकर हो चुके हों और उनमें उक्त चारों नाम में से एक भी नहीं हुए हों और २४ वें तीर्थंकर अवतार लेकर गृहस्थ वास में हो उनका नाम इन चार नामों से भिन्न हो तो क्या नाम भिन्नता के कारण ही वे तीर्थंकर होने से वंचित रह जायँगे ? नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only ४३ www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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