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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा ********************************************** दर्शन करने और तत्सम्बन्धी प्रचार करने वाले कितने ही साधु लोग प्रभु कथित चारित्र धर्म से गिरे हुए दिखाई देते हैं और समाचार पत्रों में जिनके लज्जा जनक समाचार छपते हैं तब सुन्दरजी के कथन की असत्यता में सन्देह ही क्या है? ____ अनेक मूर्ति-पूजक बन्धु सदैव मूर्ति-पूजा करते हुए भी नैतिक आचार से गिरे हुए पाये जाते हैं जो अनेक प्रकार की आधि व्याधि से अशांत और दुःखी दिखाई देते हैं। कितने ही लोग आर्थिक स्थिति के गिर जाने के कारण बड़ी कठिनाई से अपनी आजीविका चलाते हैं। फिर सुन्दरजी के उक्त शब्दों का मूल्य ही क्या रहता है? .
यदि सुन्दरजी के कथनानुसार मूर्ति-पूजा ही सदाचार, शांति सुख और समृद्धि का कारण है तो फिर मैं उनसे पूछता हूँ कि महानुभाव मूर्ति-पूजक साधु जो कि सदैव मूर्ति के दर्शन-पूजा करते हैं और मूर्ति-पूजा का यथाशक्ति प्रचार भी करते हैं उनमें आपस में ही डंडेमार क्यों चलती है? मूर्ति के दर्शन करने वाले साधु गृहस्थों के बच्चे क्यों उड़ाते हैं? उन पर राज्य संस्था की ओर से वारंट क्यों जारी होते हैं? ऊंझा (गुजरात) में लक्ष्मण विजय* नामक साधु पर जुलाई १९३८ को न्यायाधीश ने दो महीने का कारावास या ५००) रुपये दंड क्यों किया? यदि इन सभी प्रश्नों का उत्तर हमसे लिया जाय तो केवल यही है कि ये लोग केवल मूर्ति के चक्कर में पड़कर सदाचार-साधु आचार-को भूल गये हैं।
“शत्रुजय महात्म्य' नामक ग्रंथ में लिखा है कि "जिसने हत्या, चोरी, परदार-सेवन आदि दुष्कर्म किये हों तो इस पहाड़ पर आकर एक उपवास कर मूर्ति-पूजा करने से पापों का पिंड छुट जाता
* वर्तमान आचार्य विजय लक्ष्मणसूरिजी
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