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________________ [37] वंदे, कोई तेनु पूजन करे के प्रहार करे ते सर्वमां समभाव राखी ममत्व भावथी रहित थई ने आत्म साधना करवी, एवो परम पुरुष श्री वीतराग देवनो उपदेश छे, तो पछी शास्त्रमां जेनी पूजा अर्चनानो उल्लेख सरखो ए न होय तेवी जड़ मूर्ति - प्रतिमाजीनी पराणे पूजा करावी अने ते निमित्त रागद्वेष वधारीने आत्मकल्याण कराववानो धखारो करवो ते केटलो सत्वहीन छे? ते वांचक वर्ग ने समजाववुं पड़े तेम नथी । पोतानी समजण शक्ति मुजब पोताने जे कल्याण कारक लागतुं होय तेने प्रमाणिक पणेते स्वीकारे के सत्कारे तेमां बीजा कोईने बांधो होई शकेज नहिं, पण पोतानी मान्यता अन्य सर्व कोईए स्वीकारवीज जोइ एवो दुराग्रह करनारने माटे एटलुंज कही शकाय केते श्री वीतरागना मार्गने वीतरागदेवनी धर्मने थोड़े अंशेपण समज्याजनथी, अने एथीए वधु खराब ते एछे के पोतानी मान्यता थी इतर मान्यता वालाने द्वेष बुद्धि थी निंदवा, तेना सद्गुणने पण दुर्गुण ना रूपमां चितरवा, अनेक प्रकारना अवर्णवादी बोलवा, एतो हरकोईने माटे खरेखर पामरताज छे, एटलुंज नहिं पण सामाने कषायादि उत्पन्न करावी पोते अनंत संसारी बनवानी साथे अन्यने पण ए चक्रावा मां घसड़े छे। वस्तु स्वरूपे एम होवुं जोइए के पोतानी मान्यता थी विरुद्ध मान्यता वालाने शान्ति थी समजाववा उपदेशवा अने एम करीने पोताना सहधर्मी बनाववा, ए प्रयत्न अवगणना करवा लायक नथी, परन्तु पोतानी मान्यता सामी व्यक्ति न स्वीकारे तो तेनी उपेक्षा करवी, पण तेनी अवगणना के तेनापर क्रोधादि करीने आत्मघाततो नज करवो जोइए । जो विरुद्ध विचार धरावनार प्रत्ये उपेक्षा वृत्तिथी जोवायतो परस्पर भले सम्बन्ध स्नेह कदाच न वधे पण परस्पर बैर तो नज थाय, पण विरुद्ध विचार मान्यतावाला ने शास्त्रना नामे जो वगोववा मां आवे तो www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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